SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ ठकुर - फेरू - विरचित वंसी अडयालीसं सट्टि ममाणीय कसिणु बासट्ठी । जज्जावर कन्नाणय उणवन्न कुडकुडो सट्ठी ॥ २७ मट्टी मण पणवीसं तुसंन्न मण अटुंबारस वर्णन्नं । दह मण तिल घयं तह सोलस मण लवण उद्देसं ॥ २८ राजुइगु तिजणसहिओ वारस गज भित्ति पाहणे चिणइ | चउदससयाई इट्टा उदेस जल गग्गरी तीसा ॥ २९ सगवीस मणा हक्कं नव चुन्नं बिउणु खोरु इक्कि गजे । पाहाण भित्तिचिज्जइ नव मणइ इमेव जाणेह ॥ ३० लेवे केवण चुन्नं पण मणं पायसेर सण सहियं । तइयंस खोर जुत्तं तलवट्टे अद्धु जलठाणे ॥ ३१ ॥ | छाणय मण चालीसं तह कक्कर सट्ठि पक्क हुइ चुन्नं । रक्ख पवाहिय सट्ठी अरक्ख चालीस कलिया य ॥ ३२ उद्देस पंचगमिमं चंदासुय फेरुणा अओ भणियं । जह देसकरुप्पत्ती चट्टिय समए मुणिज्जेइ ॥ ३३ ॥ इति उद्देसपंचगं सम्मत्तं ॥ ॥ इति परमजैन श्री चन्द्राङ्गजठर फेरूविरचित गणितसार कौमुदीपाट्यां सूत्रं समाप्तः (तम्) | ॥ सर्वे वस्तुबंध तथा गाथा मिश्रित ३९९ ॥ लिखितं चैत्र सुदि ५ संवत् १४०४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy