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________________ - गणितसार-तृतीयाध्याय १. अथ खातव्यवहारमाहतलमुह मज्झे विसमं उड्डुत्तं अहव दीह-विसमं वा । तं एगटुं काउं विसमट्ठाणेहिं हरिय समं ॥ ५४ सम - वित्थर -दीहगुणं उंड्डत्ते गणिय हवइ खित्तफलं । खात्तं समभुववेहे घणोवमं जायए गणियं ॥ ५५ दुति चउ कर उड्डुत्ते पुक्खरणी पंच हत्थ वित्थारे । सोलस हत्थायामे किं जायइ तस्स खत्तफलं ॥ ५६ दीह कर सड्ड सोलस वित्थारे दस सवाय अङदए । अह वित्थरु दीहुदए सम नवकर किमिह पिहगु फलं ॥ ५७ २. अथ कूपस्य फलानयनमाहकुववित्थारं वग्गं तिउण खडसहिय वेहि गुणियव्वं । चहुं भाए जं लद्धं तं करसंखा हवइ सव्वं ॥ ५८ कूवस्स य विक्खंभं छ हत्थ कर वीस जस्स उड्डुत्तं । कूवस्स तस्स पंडिय ! खत्तफलं किं हवेइ धुवं ॥ ५९ . तिकोणयाई खित्ता पुन्वुत्ता खित्तफलसमा जाण । ते वि गुणियं तिवेहे हवंति घणहत्थ खत्तफले ॥ ६० ३. अथ पाषाणफलानयनकरणसूत्रम् दीहंगुलाणि वित्थर पिंडंगुल ताडियाणि विभएहिं ।। जिणें अट्ठ तेरसहिं हवंति पाहाणघणहत्था ॥ ६१ सतिय हत्थ वित्थरि करद्ध पिंडे सिलासह जस्स । सतिहाय पंच दीहे कमित्थ हुइ तस्स गणियफलं ॥ ६२ जं हवइ विविहरूवं वट्ट-तिकोणाइ सयलपाहाणं । खित्तफलु व्व गुणेविणु पिंडगुणं हवइ तस्स फलं ॥ ६३ दस हत्थे विक्खंभे घरट्टपट्ट व्व वट्टपाहाणे । दिवढकरमाणपिंडे किं होइ इमस्स गणियफलं ॥ ६४ गोलस्सुदयघणडं सनवंसे अहिय तं हवइ सेलं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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