________________
गणितसार - द्वितीयाध्याय
६. अथ भागमातृजाती आह
भागाई पंच जाई समासणं तं च भागमत्तीय ।
पिहू पहुहुत्तकरणं करेवि समय अंसजुई ॥ १० अर्द्ध पयस्स भायं तिभायभायं तहद्ध अद्धहियं । तइयं अहीणं एगट्ठे किं हवेइ धणं ॥ ११ ७. अथ वल्लीसवर्णने आहवल्लीसवन्नणविही हिट्टिम छेएण गुणवि छेयंसा । उatiसे रणु धणु पकीरए हिट्ठिमंसाण ॥ १२ दुइ तोला तिय मासा तहेव चउ गुंज पंच विसुवा य । ते सत्तसहीणा सवन्नणे किं हवइ वल्ली ॥ १३ ८. अथ भंस (स्तंभांश) कजाती आह
समछेय अंस पिंडं रूवाओ सोहि जं हवइ सेसं । तेण पच्चक्खभायं लडंके थंभपरिमाणं ॥ १४ अद्ध खडंस दुबास अंसा जल पंक वालुयत्थकमे । पञ्च्चक्ख तिन्नि कंविय भणि पंडिय ! थंभपरिमाणं ॥ १५ भाऊ पंचमु गयउ पुद्धि,
दक्खिण अट्टम सोलसंसु पच्छिम पणट्ठउ,
चाउ उ उत्तरह सीहभइण इम छट्टु नट्ठउ | तलइ रहिउ पंडिय ! निसुणि गोरू सउ पणयालु, ते इकट्ठा जइ करहि कइ लोडइ थणवालु ॥ १६ अधु सतिहाउ विंझे खडंसु सत्तंस अहिउ जलतीरे । अहं नवंसहिउ थलिगय चउसेस किं जूहे ॥ १७
॥ इति परमजैन श्रीचन्द्राङ्गज ठक्करफेरूविरचिते गणितसारे कौमुदीपाट्यां अष्टौ भागजातयः ॥
॥ इति द्वितीयोऽध्यायः ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
५.१
www.jainelibrary.org