SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणितसार-प्रथमाध्याय सडिक्कारस वन्नी तोला चालीस सड़ कणओ य । ता दस सवाय वन्नी पवट्टणे हवइ केवइओ ॥ ८४ नव आयाम तिवित्थर दुइ सइ वीसहिय कंबला सव्वे । पंचायाम दु वित्थर कइ कंबल होति ते कहसु ॥ ८५. २३. अथ क्रयविक्रयमाह- . . मज्झंत गणिय मूलं अंताई गुणिय सव्व उप्पत्ती । विकय कयंतरि भायं नाइज्जइ मूललाहधणं ॥ ८६ सतरह मण टंकेणं लिजहि पन्नरस विक्किणिजंति । जइ दस टंका लाहे ता कहु टंकाण ते मूले ॥ ८७ तिहु दम्मि पंच वत्थू लिजहि नवि दम्मि सत्त विकिज्जा । दंम दुवालस लाहे कित्तिय दम्माण सा मूले ॥ ८८ उवरि दम्म तलि वत्थु ठविजहि वंकइ विन्नि वि रासि गुणिजइ । आइम रासि लाहि ताडिजइ विहू रासि अंतरि पाडिज्जइ ॥ ८९ २४. अथ भांडप्रतिभांडकमाह- . ___ भंड - पडिभंडकरणे विवरिय मुल्लं फलं च विवरीयं । कमि गुणवि दोवि रासी हरिज लहु रासिणा भायं ॥ ९० सइ दम्मि दुमण पिप्पलि तिहु सय दम्मेहि पंच मण सुंठी । ता पिप्पलि सत्त मणे पाविज्जइ सोंठि कितिय मणा ॥ ९१ २५. अथ जीवविक्रयकरणमाह जीवस्स विक्कएण य वरिस विवरीय फलंक विवरीयं । सेसं च पुव्वविहिणा जाणिजहु जीववरमुल्लं ।। ९२ दस वरिसा तिय करहा टंका सउ अट्ठ अहिय पावंति । ता नव वरिसा करहा कइ मुल्लं हवइ पंचाण ॥ ९३ ॥ इति परमजैन श्रीचन्द्राङ्गज ठकुरफेरुविरचितायां गणितसारकौमुदीपाट्यां पंचविंशतिपरिकर्मसूत्र (त्राणि ) समाप्तानि ॥ ॥ इति प्रथमोऽध्यायः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy