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गणितसार-प्रथमाध्याय १७. अथ त्रैरासिकमाह• आइ अंतेकजाई ठविजए अन्नजाइमझेण ।
अंतेण मज्झि गुणियं आइमभागं तिरासियगं ॥ ६३ . जा इक्कारस दंमिहि दोसिय कर सत्त कप्पडो होइ। ता चउवीसिहि दम्मिहि कइ हत्थ हवंति ते कहसु ॥ ६४ भणिसु हव नाणवढें नव मुंद लहंति दम्म पणवीसं । इय अग्घपमाणेणं सोलस मुंदाण कइ मुल्लं ॥ ६५ चंदण पलं सवायं सतिहा नव दम्म मुल्ल पावेइ । ता छ पल खडंसूणा कित्तिय दम्माइं पावंति ॥ ६६ दम्मि सवा सत्तेहिं पिप्पलि दुइ सेर छट्ठमंसऽहिया । लब्भइ ता नव दम्मिहि तिहाय ऊणेहिं किं हवइ ॥ ६७ पाउणवीसा सएहिं दम्मिहि सतिहाय पंच पत्था य । ता तंदुलाइ अन्नं कइ लब्भइ इक्कि दम्मेण ॥ ६८ बारहवन्नी कणओ सतिहा सय दम्मि तोलओ इक्को । जइ हुइ त इकि मासय दसंसहीणस्स कइ मुल्लो ॥ ६९ जइ जोयणछटुंसं पंगुलओ चलइ सत्त दिवसेहिं । ता सट्ठि जोयणाई कित्तिय कालेण गच्छेइ ॥ ७० अंगुलसत्तंसो जइ दिणस्स छटुंसि कीडओ चलइ। गच्छिहइ अट्ठजोयण नियत्तई केण कालेण ॥ ७१ अथ पंचरासिकमाह-; सप्तनवैकादसरासिको य (?) हिट्ठिम फलंक विवरिय पिहु पिहु कमि दो वि पक्ख गुणिऊणं
थोवंक-रासिभायं पण सत्त नवाइ रासीणं ॥ ७२ १८. अथ पंचराशिकमाहमासेण पंचगसए वरिसे सद्विस्स किं फलं हवइ । अह नो नज्जइ कालं फल मूलं तह पमाणंत्रणं ।। ७३
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