SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ ठक्कर- फेरू-विरचित गणित सार [ प्रथमोऽध्यायः ।] नमिऊण तिजयनाहं लच्छीस - गिरीस सयल - देवज्जं । लेहाण गणणपाडी पुव्वायरिएहि जह वृत्ता ॥ १ तत्तो व (? वि) किंचि गहियं किंचि वि अणुभूय किंचि सुणिऊणं । तं सयललोय हेऊ फेरू पभणेइ चंदसुओ ॥ २ पडिकाइणि तह काइणि पडिविस्संसा तहेव विस्संसा । जावय होंति विसोवा वीस उण कमेण नायव्वा ॥ ३ वीसि विसोइहि दम्मोदम्मिहि पंचासि टंकओ इको । वीस कम दीह वित्थरि अह कंवी सट्टि वीगहओ ॥ ४ पव्वंगुलि चडवीसिहि बत्तीस करंगुली य विनेया । अट्ठि जवि तिरियगेहं पव्वंगुलु इक्कु जाणेह ॥ ५ चवीसंगुल हत्थो पंडिय चहुं हत्थि हवइ डंडु इगो । बिहुसह सिदंडि कोसो चहुँको सिहि जोयणो इक्को ॥ ६ इ भणियं सरहत्थं विक्खंभायाम गुणिय पडहत्थं । बित्थारहु उदय गुणं तं घण अत्थं वियाणाहि ॥ ७ चहुँ करपुडेहि पाई चहुँ पाई एगु माणओ भणिओ । चहुँ माह वि सेई सोलस सेई भवे पत्थो ॥ ८ छहि पलिहि इकु छहिँ गुंजि मासओ हुइ तेहि वि चहु टंकु टंकि दसहि पलो । सेरो सेरिहि चालीसि इक्कु मणो ॥ ९ ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003399
Book TitleRatnaparikshadi Sapta Granth Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorThakkur Feru, Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1996
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy