SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८। गजविनोद महाकाव्य उदयराजकृत राजविनोद दोहाद का शिलालेख १२–मुदपफर के पुत्र महंमद के विषय में १२--दोहाद शिलालेख के पद्य १८ में पल्लिदेश वर्णन करते हुए राजविनोद (सर्ग २ का उल्लेख है । इस देश पर बेगड़ा सुलप० १०) में नन्दपद और पल्लिवन का तान के मुख्य मन्त्री इमादल का शासन उल्लेख है:-- था"आद्याप्यहो नन्दपदाधिनाया "पल्लीदेशाधिकारं च पुण्यं पुण्यमतिस्तदा भल्लूकवत्पल्लिवने भ्रमन्ति" ॥६॥ दुष्टारिहृदये राज्यं दुर्गमेनं चकार वै॥१८॥" फिर, नन्दपद के राजाओं के विषय में डा० साँकलिया का मत है कि गोधरा लिखा है:-- तालुका में पाली नामक स्थान ही पल्लि 'विभिन्नप्राकारसौधस्फुरदेहमालाः' देश है । यहाँ 'विभिन्न प्राकार' पद से विदित पल्लीवन और पल्लिदेश एक ही हैं । होता है कि पल्लिवनान्तर्गत नन्दपद में उस समय कोई किला भी था । यहाँ मुदफ्फर के पुत्र महम्मद के समय यहाँ बेगड़ा के समय के पल्लि देश के पल्लिवन से तात्पर्य है। से तात्पर्य है। १३-राजविनोद में 'गायासदीन' उपाधि का १३–दोहाद शिलालेख के पद्य ७ में-"श्री ग्यास प्रयोग महमूद बेगड़ा के पिता महम्मद के (दीन) प्रभोः अन्वये साह श्री महमूद वीर लिए हुआ है:-- नृपतिः. . . जातः" लिखा है । यह भी मह“गायासदीन इति साहि महंमदेन्द्रः” मूद के पिता ही की उपाधि है, महमूद की नहीं, जैसाकि पद्य पढ़ने से प्रतीत होता है। - महमूद को सिक्कों और लेखों में 'नासिर उदुनियाँ वा-उद्-दीन' (संसार और धर्म का रक्षक) लिखा है। ___ अहमद (१) के पुत्र महंमद (२) को भी सिक्कों में ग़ायासउद्दीन लिखा है । (एपि० इन्डि० जन० १९३८ पृ० २१६) इस प्रकार दोहाद के शिलालेख और राजविनोद काव्य की तुलना करने से हम नीचे लिखे निष्कर्षों पर पहुँचते हैं: (१) प्रयागदास का पुत्र उदयराज महमूद बेगड़ा (१४५८-१५११ ई०) का हिन्दू राजकवि था। - (२) उदयराज ने यह सप्तसर्गात्मक 'राजविनोद महाकाव्य' संस्कृत में लिखा है और इसमें महमूद बेगडा व उसके पूर्वजों का वर्णन है । यह काव्य बेगड़ा के राज्य के पहले दस वर्षों (१४५८-१४६६) में लिखा गया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003398
Book TitleRajvinod Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages80
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy