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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य क देन यह आवश्यक था कि कोई भी राजा युद्ध के लिये सर्वदा प्रस्तुत रहता था। छिरौरा वंश में उत्पन्न कवि सोमनाथ प्रतापसिंह जैसे आश्रयदाता को पाकर कृतार्थ हो गए और अपनी वाणी का पूर्ण उपयोग किया। इनके ग्नन्थों से विदित होता है कि कवि ने अपनी बुद्धि का उपयोग अनेक क्षेत्रों में किया और साहित्य के विविध अंगों की पूर्ति सुन्दर रूप में की। इस ग्रन्थ में कवि ने अपने वंश का वर्णन भी किया है और अपने लिए लिखा है सोमनाथ तिनको अनुज, सब तें निपट अजान । यह देखने की बात है कि जहां रीतिकालीन कवि अपनी प्रशंसा के पुल बांध देते थे और अपनी बुद्धि तथा काव्य-चातुर्य की प्रशंसा करते अघाते नहीं थे, वहां सोमनाथ ने अपने को 'सब तें निपट अजान' कह कर उसी अादर्श का अनुकरण किया है जिसके अनुसार महात्मा तुलसीदास ने अपना परिचय 'कवित विवेक एक नहिं मोरे' अथवा 'मूढ मति तुलसी' कह कर दिया है । इस ग्रन्थ के प्रणयन हेतु प्रतापसिंहजी ने स्वयं ही कवि को प्राज्ञा दी थी। कवि लिखता है सु यह कुमर परताप को, हुक्म पाइ सविलास । रस पियूष निधि ग्रन्थ कौ, बरनत सहित हुलास ॥ एक बार पुनः तुलसी के अनुकरण पर संत और असन्तों के चरणों की बंदना करते हुए कवि सोमनाथ कहते हैं सज्जन दुर्जन की सदां, सहस गुनी परनाम । दया कीजियौ दीन लषि, सोमनाथ को नाम ।। सबसे पहले कवि 'पिंगल' का प्रकरण लेते हैं क्योंकि उनका कहना है छंद रीति समझे नहीं, बिन पिंगल के ज्ञान । पिंगल मत तातै प्रथम, रचियत सहित सयान ।। (प० ५२ की टिप्पणा का शेष अंश ) सारदा छवित्र सी अनंत मित्र मित्र सी , सुरेस आतपत्र सी नछत्र की कतारसी। बाहुवली बषत बिलंद परतापसिंघ , किति तुव राज इमि थिरा के सिंगारसी। रूप के पहारी अमंद छीर घारसी। पियूष पारावार सी सतोगुन के सारसी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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