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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन X (पृष्ठ ३८ की टिप्पणी का शेष अंश ) इस 'रसिक गुविंद' से भ्रम उत्पन्न होता है। कवि को रसिक कहा गया है। इसका अभिप्राय यह नहीं कि हम उनके नाम में भी उनके इस गुग या धारणा को शामिल कर दें। उन्होंने अपना नाम स्पष्ट रूप से बताया है। रसिक, भक्त, लेषक गुर्विद कवि कोक काव्य बिलौया । सुकवि गविंदादिकनि कृत यह प्रानन्द समूह । याते नाम अानन्दवन धरयौ रहत प्रत्यूह ॥ मित्र ‘गुविंद' को चित चुरावै वारी बैस वारी उजियारी श्री ‘गुविंद' कहैं । वास्तव में पुस्तक का नाम तो आनंदघन और कवि का नाम गोविन्द है। किन्तु दोनों को मिला कर पुस्तक का नाम 'गोविन्दानंदघन' हुपा। इन सबके उपरान्त हस्तलिखित पुस्तकों में पुस्तक का नाम स्पष्ट रूप से 'श्री गोविन्दानंदघन' लिखा गया है, फिर भी न जाने किस कारण से अनेक विद्वानों को इस प्रकार का भ्रम हुअा। निम्बार्क सम्प्रदाय के 'सर्वेश्वर'सम्पादक श्री व्रजवल्लभ शरणजी से वृन्दावन में बात करने पर, तथा सलेमाबाद के श्री जी महाराज से तत्सम्बन्धी चर्चा करने पर पता लगा कि रसिक शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया कि इस नाम के उस समय श्री जी महाराज भी थे, अत: दोनों नामों में कुछ भेद करना आवश्यक था। वैसे इनका नाम 'गोविन्द नाटानी' था। मेरे अनुमान से तो इस भ्रान्ति का कारण एक दूसरे से हुबहू अवतरण लेने की परम्परा है। एक और भी बात देखिए । शक्ल जी ने --- सालिग्राम सुत जाति नटानी बालमुकुंद को भैया' के आधार पर इनकी जाति, जैसा कवि ने संकेत किया, वही लिख दी है । 'नाटानी' जाति नहीं होती, प्रत्युत खण्डेलवाल वेश्यों में 'नाटानी' गोत्र होता है, नाटानी गोत्र के खण्डेलवाल जयपुर में बहुत प्रतिष्ठित थे और वहाँ का एक रास्ता अब तक 'नाटानियों का रास्ता' कहलाता है । नाटानियों की प्रसिद्ध हवेली भी उसी रास्ते में है। उस गली में अनेक नाटानियों के घर हैं। बालमुकुंद नाटानी महाराज जयपुर के दीवान थे और उसी आधार पर बहुत से नाटानी अब भी 'दीवानजी' कहलाते हैं। इनमें श्री सीतारामजी नाटानी से मेरी बहुत सी बातें हुईं। इन बातों के प्राधार पर ऐसा लगता है कि जिन बालमुकुंद का कवि ने अपने ग्रन्थ में वर्णन किया है और जो कवि के भाई लिखे गये हैं वे जयपुर के प्रसिद्ध दीवान बालमुकुंद ही हैं """"""""बालमूकन्द को भैया। दोनों का समय मिलाने पर बात बहुत-कुछ मेल खाती है। एक बात और भी सोचने की है। अपना परिचय देते समय कवि या लेखक अपने पिता के नाम का उल्लेख करते हैं। भाई के नाम का उल्लेख विशेष परिस्थिति में ही किया जाता है। कवि द्वारा अपना परिचय बालमुकुंद के भाई के रूप में देना इस बात को प्रमाणित करता है कि ये बालमुकुंद अवश्य ही कोई प्रसिद्ध व्यक्ति थे । कवि के खण्डेलवाल होने में किसी प्रकार का संदेह नहीं। सब से पहला प्रमाण तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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