SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १-पृष्ठभूमि उनकी प्रजा सुखी रहे। राजा के विनोद, आखेट, क्रीडा प्रादि जनता को भी उत्साह प्रदान करते थे। महल की रंगरेलियों के अलावा कभी कभी 'लाल' की जोटें भी तैयार की जाती थीं ।' राजपुत्रों को पढ़ाने के लिए पंडित रखे जाते थे जो हितोपदेश और पाइने अकबरी आदि से राजनीति और सामान्य नीति सिखाते थे। वैद्यक और ज्योतिष का भी कार्य चलता था । अंग्रेजी अस्पताल उस समय तक स्थापित नहीं हुए थे। लोगों का स्वास्थ्य उत्तम कोटि का था। कभी-कभी राज-परिवारों में झगड़े भी हो जाते थे। भरतपुर के दुर्जनसाल, करौली के मदनपाल और अलवर के मोहब्बतराय आदि इसके उदाहरण हैं। इस समय में अंग्रेजों का अातंक सभी जगह छाया हुआ था। यद्यपि कुछ लोग उन्हें अछूत समझते थे किन्तु उनकी ओर से सर्वदा सजग रहते थे । 'फिरंगी' नाम जन-साधारण में आतंक का सूचक होता था। लोगों का साधारण ज्ञान सुनी-सनाई बातों पर आधारित होता था। जीवाराम के 'अक्कलनामे' से जिन बातों का ज्ञान होता है वे वास्तविकता से दूर हैं। बंगाले में जादू की बात केवल जनश्रुति पर अवलम्बित है नहीं तो उस समय तक बंगाल पर पूर्ण रूप से अंग्रेजों का अधिकार था और जादू आदि सब दूर हो चुके थे तथा जादू आदि के स्थान पर वहाँ अाधुनिक विज्ञान की बातें प्रारम्भ हो चुकी थीं। मन्दिरों और गाय को पूज्य भाव से देखा जाता था । गंगा और यमुना को पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती थी। शिवजी की पूजा घर-घर होती थो और जिस प्रकार आजकल शिवरात्रि को महादेवजी का 'व्याहुला' सुना जाता है उसी प्रकार भक्त लोग तब भी रात्रि को व्याहुला सुनते और जागरण करते थे। लोगों के विचार धार्मिक थे और राजा को देवता मान कर उसमें भक्ति और विश्वास रखते थे। मत्स्य का जन-समाज कुछ पिछड़ा हुमा प्रतीत होता है, सामान्यत: वे उस समय की प्रचलित विचारधारा से पीछे थे। ऐसा प्रतीत होता है कि मत्स्य में उन्नीस सौ तक पश्चिम का प्रभाव आया ही नहीं था। लोग अंग्रेजों को अछूत समझते थे और इसी प्रकार विदेशी सभ्यता तथा संस्कृति को। कुछ लोग अंग्रेजों से हाथ मिलाने के पश्चात् स्नान तक करते थे। उर्दू और फारसी का प्रचार था और संस्कृत का सम्मान । कुछ लोग हिन्दी के उत्थान में सतर्क थे और ऐसे ही पुरुषों के उद्योग से आज हिन्दी का अस्तित्व राज्यों में दिखाई पड़ रहा है। हमें अपने अनुसंधान में अनेक प्रकार की हस्तलिखित प्रतियां मिलीं। इनमें १ 'लाल ध्याल' देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy