________________
मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन
२७१ का परिचय मिलता है। मत्स्य के रीतिकारों में दास, तोष, देव ग्रादि के साथ बिठाने के लिये कई कवि हैं ।
३. रोति ग्रन्थों का प्रणयन राजाओं के पठन-पाठन हेतु होता था इसलिये उनमें इस बात का ध्यान रखा जाता था कि पाठ्य सामग्रो संयन हो और शृंगार के वर्णन भी शोल की सीमा का उल्लंघन न करने पावें। समझ में आने को सुगमता की अोर भी ध्यान दिया जाता था। राग-रागिनियों आदि को भी सुगम प्रणाली में ही अभिव्यक्त किया गया। यह स्वीकार करना पड़ता है कि यहां के ग्रन्थ सरलता के साथ-साथ वैज्ञानिकता लिये हुये हैं ।
हिन्दी का अाधुनिक काल गद्य कोल के नाम से संबोधित किया जाता है । इस काल का प्रारंभ संवत् १६०० से माना जाता है। गद्य के विकास हेतु अनेक प्रयत्न हुए और धारे-धीरे खड़ो बोलो गद्य का आधुनिक रूप भी विकसित हुआ। मत्स्य के गद्य साहित्य में खड़ी बोली या किसी अन्य गद्य को विकसित करने को कोई प्रेरणा नहीं देखी जातो। यहां जो कुछ भी गद्य लिखा गया वह अपने स्वाभाविक रूप में ही विकसित हुया । हमारे आलोच्य काल में मत्स्य का ब्रजभाषा गद्य ही देखने को मिलता है। भाषा-भूषण को टोका, अकलनामे, हितोपदेश की कहानी, सिंहासन बत्तीसो, वैराग्य सागर, उपनिषदों की व्याख्या आदि में ब्रजभाषा गद्य का रूप मिलता है । अपेक्षाकृत पिछले गद्य में कुछ खड़ी बोली के रूप भी मिलते हैं। अंग्रेजी प्रान्तों की तरह मत्स्य में गद्य की वेगवतो गति दृष्टिगोचर नहीं होती, किन्तु जो भी मिला है वह संयत और मधुर है--
१. मत्स्य का ब्रजभाषा गद्य ही यहां के साहित्यिक गद्य की प्रतिष्ठा करता है। अंग्रेजी प्रान्तों में तो साहित्यिक गद्य खड़ी बोली का गद्य कहलाता था किन्तु १६५० वि० तक मत्स्य प्रदेश में ब्रजभाषा गद्य हो काम में लिया जाता रहा । पत्र, परवाने, रुक्के, गद्य पुस्तकें, व्याख्या आदि सभी इस रूप में मिलते हैं ।
२. कहानी साहित्य के कुछ अंश, उर्दू गद्य का नागरी लिपि में रूपान्तर, मुसलमानों की वार्ता आदि में खड़ी बोली के रूप भी मिल जाते हैं किन्तु यह प्रवृत्ति गद्य के साथ पद्य में भी देखी जाती है । 'उपनिषत् सार' में गद्य के सुन्दर प्रयोग मिलते हैं और 'भाषा भूषण' को टीका में प्रयुक्त गद्य तो ब्रजभाषा गद्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रान्त की प्रचलित भाषा होने के कारण इस प्रदेश में ब्रजभाषा गद्य ही चलता रहा ।
३. अंग्रेजी की गद्य-प्रेरणा, गद्य की द्रुत गति, विषय-विविधता यहां नहीं मिलती। हमारे सामने केवल ब्रजभाषा गद्य का ही मधुर रूप पाता है जो यहां
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org