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________________ अध्याय ८ उपसंहार मत्स्य प्रदेश का हस्तलिखित साहित्य एकत्रित करने में मुझे अनेक स्थानों, व्यक्तिगत पुस्तकालयों तथा संस्थाओं की खोज करनी पड़ी और तभी इस प्रांत के कुछ गौरवमय, किन्तु अब तक प्राप्त पृष्ठ हाथ लग सके । जो कुछ सामग्री मुझे मिल सकी उसके ग्राधार पर मैं कह सकता हूँ कि 'नागरी गुणागरी' के साहित्य भण्डार की वृद्धि करने में मत्स्य प्रदेश किसी भी प्रकार पीछे नहीं रहा । यह अवश्य है कि विद्वानों और अन्वेषकों का इस ओर यथोचित ध्यान न होने के कारण यहाँ का बहुत-सा साहित्य तो नष्ट हो गया और जो बचा भी है वह प्रकाश में नहीं है । इसमें संदेह नहीं कि कुछ खोजकर्ताओं ने इस कार्य में बहुत संकुचित मनोवृत्ति का परिचय दिया । कुछ ने तो सामग्री एकत्रित कर उसे इधर-उधर दे डाला और किसी प्रकार के प्रकाशन के लिए अवसर नहीं दिया । प्रकाशन से भी पता लगता है कि मत्स्य के साहित्यकार किस प्रकार अपने कार्य करते रहे । कुछ ऐसे महानुभाव भी हैं जो बहुत-सी मूल्यवान सामग्री को संचित करके उसे दबाये बैठे हैं। दिखाने की प्रार्थना करने पर वे समझते हैं कि यदि उस सामग्री का पता किसी अन्य व्यक्ति को हो गया तो अनर्थ हो जायेगा । यदि उनसे उस सामग्री को प्रकाशित करने के लिए कहा जाता है तो बहुत से बहाने उपस्थित कर देते हैं । बहुत सी मूल्यवान सामग्री अभी बस्तों में बंद है जिनके अधिकारी यह जानते ही नहीं कि उस सामग्री का क्या उपयोग हो सकता है । अनुसंधान करने वालों के लिए निश्चय ही मत्स्य प्रदेश में प्रचुर सामग्री है किन्तु अावश्यकता है कार्य और लगन की । 1 खोज में मिले ग्रन्थों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मत्स्य के साहित्यकार प्राय: राज्याश्रित थे । इनमें से कुछ लोग वेतनभोगी थे और कुछ सामयिक पुरस्कार आदि के द्वारा अपनी जीविका चलाते थे । यह बात माननी पड़ेगी कि यहां के साहित्य-सृजन तथा विकास में राजाओं का बहुत हाथ रहा । कुछ साहित्यकार मस्त फकीर भी हुए जिन्हें किसी राजा - रईस की चिन्ता नहीं थी। पहले ही लिखा जा चुका है कि बहुत समय पहले लालदास एक ऐसे महात्मा हुए। इनकी रचनाएं सन्त-साहित्य के अंतर्गत प्राती हैं । ये मेव थे और मुसलमान और हिन्दू दोनों को ही मिलाना चाहते थे । ये बड़े स्वतन्त्र जीव थे और कबर की प्रार्थना पर भी दिल्ली नहीं गए, बादशाह ने स्वयं ही इनके स्थान पर आकर इनका दर्शन किया । इसी प्रकार चरनदास तथा उनकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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