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मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन
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३. राजस्थान का यह प्रान्त जैसे वीरता का अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता है, उसी प्रकार यहां की युद्ध-सम्बन्धी कविता भी ऊँचे दर्जे की हुई । हमारा तो अनुमान है कि मत्स्य का यह वीर - साहित्य गौरव के साथ अपना मस्तक ऊँचा कर सकता है ।
४. राजाओं का मनोविनोद तो चलता ही रहता था, किन्तु उसके साथ कवियों द्वारा प्रस्तुत वर्णन की सूक्ष्मता और प्रकृति का निरीक्षण बहुत सुन्दर बन पड़ा है। सभी बातों का विचार करते हुए हमें मानना पड़ता है कि यहां के कवि वास्तविकता और स्वाभाविकता की ओर अधिक के हुए थे ।
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