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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन २१५ का वर्णन आता है । दूसरे भाग में प्रतापसिंहगो तथा उनसे आगे होने वाले राजाओं का वर्णन है। पुस्तक के प्रथम भाग में ब्रजभाषा प्रयुक्त हुई है, किन्तु दूसरे भाग में खड़ो बोली और साथ हो उर्दू के छंद, जैसे अवल इष्ठ अपने का धरि चित्त ध्यान । करू मसनवी मख्तसिर में बयान । दिया हुक्म कप्तान पौलिट सहाब । बहादुर वो , पीडिल्लु' जिनका खिताब ।। दिया हुक्म मुझ पै यह होके खुशहाल । करो मुख्तसिर राज अलवर का हाल ।। तात्पर्य यह है कि पुस्तक एक अंग्रेज अफसर के कहने पर उन्नीसवीं सदी के अंत में लिखी गई। इसमें सन् १८६४ ई० तक का वर्णन मिलता है। महाराज मंगलसिंहजी का देहान्त सन् १८६२ में हुअा था और उनके उपरान्त जयसिंहजो गद्दी पर बैठे। प्रथम भाग के कुछ अवतरण लसत बाल विधु भाल में, मुंडमाल विष व्याल । या छवि सों मो मन बसौ, पशुपति परम कृपाल ॥ कवित्त असन धतूरा भांग बसन बघंवर के , भूषन भुजंग प्रभा पूरिय अपारा है । प्रोढे गजखाल कर कलित कपाल मूल , धरें मुंड माल उर उदित उदारा है। कवि शिवदत्त पुंडरीक से बदन पांच , शंभु को रुचिर रूप तीनों पुर तारा है। लोचन विशाल भाल चन्द्रमा विराजै चारु , चन्द्रमा के निकट विराजी गंगधारा है ।। इस पुस्तक में प्रमुख घटनाओं की वास्तविक तिथियां दी गई हैं। यथा-- 'राजा सोरठदेव गद्दी विराजै। मिती कातिक बदी १० साल १०२३ के ।' 'बीजलदेवजी देवलोक हुअा मिती सावण सुदी ४ संवत् १३०६ ।' पुस्तक में स्थान-स्थान पर गद्य भो है ' कवि का संकेत Captani P.W. Powlett की अोर है जो १८७४ ई० में अलवर के स्थानापत्र पोलिटिकल एजेण्ट थे। इन्होंने अलवर, करौली और बीकानेर के गजेटियर लिखे थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www. www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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