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अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी ___यदि यह ग्रन्थ बराबर चलता तो निश्चय रूप से हमें सूरजमल के समय का पूरा हाल मिल जाता । सूरजमल सन् १७६३ ई०, (१८२० वि०) तक रहे।'
१. विजय संग्राम- षुमाल कवि । इस पुस्तक को पत्र संख्या २२ है। पुस्तक का प्रणयन काल संवत् १८८१ हैं
संवत ससि वसु अष्ट विधु पुरन जय संग्राम ।
माघ वदी दसमी सुतिथि सुक्रवार विश्राम ने प्रारम्भ में गणेश स्तुति है
सु षुसाल हिय नाम (सरस) परि अति अनूप सोना सहित ।
वर विनय सिंह कूरम कलस करौं सदां सुपसार नित ।। सर्व प्रथम राजवंश का वर्णन सूर्य, मनु, इक्ष्वाकु..... से किया है। इसी प्रकार आगे बढ़ते बढ़ते
तिनसुत जोरावर भये राजकाज सिरताज । मुहबतसिंह तिनके भये करो जगत सुभ राज ।। प्रगट भये परताप सुत फैलो जगत प्रताप । राज करो बहु देस लै वीर रूप धरि अाप ।। वषतावर तिनके भये..." वषतावर के सुत भयो विजयसिंह महाराज ।
सूरवीर रन धीरधर सब राजनि सिरताज ।। विनयसिंह की कीर्ति का वर्णन
.. चहचही चंद ऐसी चरचि चारु चांदिनीमी ,
चंदन सी चवर सी चारु छवि धारी है । छीर के सील हरि छहरि गई छिति छोर , छीरनिधि छीहर हू की छकि छवि हारी है ।।
१ इस प्रकार का प्रयास कवि उदयराम द्वारा 'सुजान संवत' नामक पुस्तक में किया गया
है। यह पुस्तक १८२० वि० तक चलती है। २ इसी प्रकार पुस्तक के अंत में लिखा है--
___ 'इति श्री श्री महाराव राजा श्री सवाई विनयसिंहजी बहादुर विजयसंग्राम संपूर्णम् । श्रीरस्तू । संवत् १८८१ माघ शुक्ला तिथयौ १३ भौमवासरे लिषितं भगवान ।
श्रीरस्तू । शुभं भूयात् । 3 'तिनके भये' का अर्थ यही लगाना चाहिये कि उनके पश्चात राजा हुए-चाहे दत्तक
हों अथवा औरस पुत्र।
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