SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ अध्याय ५ - नीति, युद्ध, इतिहास सम्बन्धी ___यदि यह ग्रन्थ बराबर चलता तो निश्चय रूप से हमें सूरजमल के समय का पूरा हाल मिल जाता । सूरजमल सन् १७६३ ई०, (१८२० वि०) तक रहे।' १. विजय संग्राम- षुमाल कवि । इस पुस्तक को पत्र संख्या २२ है। पुस्तक का प्रणयन काल संवत् १८८१ हैं संवत ससि वसु अष्ट विधु पुरन जय संग्राम । माघ वदी दसमी सुतिथि सुक्रवार विश्राम ने प्रारम्भ में गणेश स्तुति है सु षुसाल हिय नाम (सरस) परि अति अनूप सोना सहित । वर विनय सिंह कूरम कलस करौं सदां सुपसार नित ।। सर्व प्रथम राजवंश का वर्णन सूर्य, मनु, इक्ष्वाकु..... से किया है। इसी प्रकार आगे बढ़ते बढ़ते तिनसुत जोरावर भये राजकाज सिरताज । मुहबतसिंह तिनके भये करो जगत सुभ राज ।। प्रगट भये परताप सुत फैलो जगत प्रताप । राज करो बहु देस लै वीर रूप धरि अाप ।। वषतावर तिनके भये..." वषतावर के सुत भयो विजयसिंह महाराज । सूरवीर रन धीरधर सब राजनि सिरताज ।। विनयसिंह की कीर्ति का वर्णन .. चहचही चंद ऐसी चरचि चारु चांदिनीमी , चंदन सी चवर सी चारु छवि धारी है । छीर के सील हरि छहरि गई छिति छोर , छीरनिधि छीहर हू की छकि छवि हारी है ।। १ इस प्रकार का प्रयास कवि उदयराम द्वारा 'सुजान संवत' नामक पुस्तक में किया गया है। यह पुस्तक १८२० वि० तक चलती है। २ इसी प्रकार पुस्तक के अंत में लिखा है-- ___ 'इति श्री श्री महाराव राजा श्री सवाई विनयसिंहजी बहादुर विजयसंग्राम संपूर्णम् । श्रीरस्तू । संवत् १८८१ माघ शुक्ला तिथयौ १३ भौमवासरे लिषितं भगवान । श्रीरस्तू । शुभं भूयात् । 3 'तिनके भये' का अर्थ यही लगाना चाहिये कि उनके पश्चात राजा हुए-चाहे दत्तक हों अथवा औरस पुत्र। Jain Education International For Private & Personal Use Only wm www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy