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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन १७३ नीत ही तें राजा राजे नीत ही तें पातसाही , नीत ही को जस नवखंड मांहि गाईये । छोटेनि को बड़े कर बड़े महाबड़े कर , तातें सबही कौं राजनीति ही सुनाईये ।। कवि द्वारा वर्णित यह नाति उनके व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है। इसका एक उदाहरण और देखिए जिसमें कुछ बातों के उत्कर्ष का वर्णन किया गया है सूम की उदारताई दाता की अपनताई , क्रोध की तपन ताह कहो को वखानि है । मांगन की हलुकाई गुन की सुभगताई , घोड़ा की तुताई ताहि कैसे उर आनि है ।। मीत मिले की सिलाई अरु मान की रषाई , और बोल की मिठाई देवीदास सुषदानि है । कुच की कठोरताई अधर की मधुराई , कविता की तरसाई जानि है सु जानि है ।। और देखिए क्या करना चाहिये और क्या न करना चाहिये' (अ)-प्रारंभत जाय बहु लोकनु सौं वैरु होय , दूसरें करत जाहि धर्म ठहरे नहीं। करत करत जाहि उपज कलेस बहु , फलु असो लागे जासौं पेट हू भरे नहीं। अति षोटो काम जैसौ कुल में कियो न होय , अति ही दुरत के तु पूरौ ऊपर नहीं। देवीदास जामें लाभ षरच बराबरि है , बुद्धिमान है' के असौ कारजु करै नहीं ।। (प्रा)-जासों अति प्रीति सब जगत में विदित होय , जासों पुनि वरु होय दसै दाम दीजिये। देवीदास कहै जो जिहाज को बनिजु करें, धूरतु कहावै ताकी बात नहीं कीजिये ।। जिन कहूं पहले कदापि चोरी करी होय , कुल सील रहित विचार कर लीजिये। सुष चाहे आपको तो सब को सदा को सीष , इतने मनुष्यन सौं संगति न कीजिये। 'संपदा' की सार्थकता ऊजरे महल नांहि पालिकी बहल नांहि . चहल पहल नांहि होम की ध्वनि सी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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