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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन मंजु महल मंदिर किये कुंज भवन बनवाय । प्रति अवास ऊंचे पटा लगे घटासों जाइ ॥ गिरि गोवर्धन भुवन की रचना कहिसक कोइ । लाजत लषि सुरपति सदन मदन मोह मन होइ ।। मानसरोवर मानसी रची गग गंभीर , वहां हंस विलसें यहां परमहंस हैं तीर । अब बरनहु गिरिवर गहन करत जंतु जहं केलि , सप्त कोस के फेर में सघन वृक्ष वन बेलि । 'गिरिवर विलास' में अनेक बातों का हृदयस्पर्शी वर्णन मिलता है। इस गिरि की महिमा, गोवर्द्धन के प्रति भरतपुर के राजाओं की भक्ति तथा यहां पर मनाये गये प्रथम उत्सव का विवरण इस ग्रंथ में पाया जाता है। इसमें सन्देह नहीं कि गोवर्द्धन का प्रसिद्ध दीपदान इस समय से ही प्रारम्भ हुआ 'नृप सजान के समें सौ दीपदान दुति भाइ ।' कवि का कहना है कि यह स्थान राधा और कृष्ण की रास-भूमि है, इसो प्रसंग में लिखे गये कुछ छंद नीचे दिए गए हैं- .. १. रमित रास रस रसिक सिरोमनि , नागर नगधर नंदकिसोर । थिरकत पटल पीतपट अंचल , चंचल चपल चलत चंहु ओर । बजत बाघबर साधि सकल स्वर , मधुर मधुर मुरली घनघोर । बजत मृदंग संग गिरि गुंजत , सुनि सुनि छिन छिन कहुकत मोर ।। राधे रमित रास रस मंडल, मधुर मधुर नूपुरन ठकोर । रतन कनिक तन श्रमकन झलकत ललकत अलि अलकन की अोर ।। उघरि जात वर चीर चंदमुख, लषि लषि चितवत चकित चकोर । करत गान कोकल कल कुहकत, चहुतक चातक चारहुं ओर ।। ३. रमित रास रस रसिक राज अर , ताता थेई तथेई तत्थेई तास्थेईया । पटकत पग छुट त लट बेनी , बिलुलत बदन लेत फिरकईया। हरकत पुंछ मनंहु पंनग सुत , ससिरथ मनहु मदन मृग छईया। नितंत नवल लाल बालन संग , राधे राधे राधे राधे कहत कन्हैया ॥ ४. तोरत तान न मानत तन अति गति उछटति मनहु मदन मृग जोरी , निर्तत नवल बाल लालन संग कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण कहति किसोरी। गोवर्द्धन परिक्रमा गिरि परिकर्मा देत हैं नरनारी बहु भीर । मनहु मदन-रति की कला कोटिक घरे सरीर ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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