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________________ अध्याय ४ -भक्ति-काव्य पुन तातें यह 'नाटक' महान , तिहुँ लोकन को पावन प्रमान । विचित्र रामायण एक बहुत सुन्दर काव्य-ग्रन्थ है जिसमें कवि की मौलिकता स्थान स्थान पर लक्षित होती है । पुस्तक में अनेक छंदों का प्रयोग और विशिष्ट शब्द-चयन कभी कभी रामचन्द्रिका का ध्यान दिला देते हैं, किन्तु अर्थ-ग्रहण में कहीं भी कठिनाई नहीं होती--सर्वत्र ही सरल और स्वच्छ कविता के दर्शन होते हैं। संक्षेप में यह ग्रंथ प्रत्येक प्रकार से एक सुंदर काव्य है। इसमें १४ अंक हैं, मंगलाचरण है और कथा भी सम्पूर्ण रूप में है। इसका नायक धीरोदात्त है, प्रतिनायक भी है। गृहीत प्रसंग सुन्दर हैं, साथ ही संयोग और वियोग के प्रकरण सुन्दरता के साथ चित्रित किये गये हैं। कथा में कहीं भी शैथिल्य दृष्टिगोचर नहीं होता। साथ ही यह हस्तलिखित प्रति भी अति उत्तम है। चारों ओर काफी हाशिया छोड़ कर सुस्पष्ट और मोटे अक्षरों में समस्त ग्रन्थ लिखा गया है । स्याही चमकदार है तथा प्रारम्भ से अंत तक हस्तलेख बहुत ही सुन्दर और चित्ताकर्षक है । पुस्तक दर्शनीय है और उस समय की उत्कृष्ट हस्त लेखन कला का सम्यक् प्रतिनिधित्व करती है। प्रचलित परंपरा के अनुसार गणेश' और सरस्वती की वंदना के पश्चात् गुरु-वंदना तथा स्थान विशेष (भरतपुर) का भी वर्णन है। और इसके उपरांत रामायण लिखने की परम्परा का उल्लेख है कि किस प्रकार सबसे पहले हनुमानजी ने रामायण की कथा लिखी, 'ताके अनंतर वालमीक विसाल मनि', 'ताके अनंतर भोज भूपति' पनि मिश्र दामोदरहि ने क्रम सहित विरच्यौ पानि के'। यह द्रष्टव्य है कि तुलसी, केशव आदि राम-गाथाकारों के नाम नहीं लिखे गये हैं । ___ इस पुस्तक के लिखने के लिए स्वयं राजा ने आज्ञा दी थी तिन की अनुसासन लहि उदार , कुल विदित वस्य खंडेलवार । १ श्री गणेशाय नमः विनय करत हों प्रथम ही गणपति को सिर नाय । जिनके सुमरण ध्यान तै उर अज्ञान विलाय ॥ २ सरस्वती की स्तति एक भाव पूर्ण कवित्त द्वारा की गई है। 3 गुरु पद पदम परागवर मम मन मधुपहि राषि। राम चरित भाषा करौ, निज मति उर अभिलाषि ॥ ४ संभवतः कवि महाशय मिश्र दामोदर से प्रभावित हुए थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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