________________
सञ्चालकीय वक्तव्य
प्रामुख
श्रध्याय १ - पृष्ठ भूमि
१ - ३०
-
- ६, प्रान्त के साहित्य और
मत्स्यप्रदेश की परम्परा और प्राचीनता १, आधुनिक मत्स्यप्रदेश के चारों राज्य ३, प्रदेश की विशेषताएं ५, यहां के देवता - ७, समीपवर्ती प्रदेश का प्रभाव - ८, अन्य प्रवृत्तियां, प्रचलित भाषा और बोलियां संस्कृति पर प्रभाव १०, चारों राज्यों की एकता १३, ब्राह्मणों की प्रधानता - १५, अन्य वर्ण - १५, पेशेवार १६, मत्स्यप्रान्त की साहित्यिक परम्परा साहित्यिक सामग्री के स्थान १६, कुछ पुराने साहित्यकार - २२, लालदास नल्ल सिंह - २२, करमाबाई - २३, जोधराज २३, हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रचुरता २५, अलवर और भरतपुर का सापेक्षिक महत्त्व २८, अनुसंधान के स्थान - २६ ।
१७,
२२,
-
-
Jain Education International
-
-
विषय - सूची
-
६१ ।
M
अध्याय २ रीतिकाव्य
३१ - ६२
हिन्दी में रीतिकाव्य ३१, काव्यसम्प्रदाय ३१, रससम्प्रदाय ३१, अलंकार सम्प्रदाय - ३२, रीतिसम्प्रदाय - ३२, वक्रोक्तिसम्प्रदाय - ३३, ध्वनिसम्प्रदाय - ३३, मत्स्य के रीतिकार और उनकी प्रवृत्तियां - ३४, गोविन्द कवि ४०, शिवराम ४४, सोमनाथ - ५०, कलानिधि ५७, बखतावर सिंह के राजकवि भोगीलाल : बखतविलास - ६५, सिखनख ६८, हरिनाथ व विनयप्रकाश ७०, रामकवि : अलंकारमंजरी - ७४, छंदसार - ७५, ब्रजचंद : श्रृंगारतिलक ७७, मोतीराम : ब्रजेन्द्रविनोद ७८, जुगलकवि : रसकल्लोल ८१. रसानंद : सिखनख ८४, ब्रजेन्द्रविलास ८६, सिद्धान्तनिरूपण की विशेषताएं - ८६, कवि देव श्रादि के
आगमन
-
-
-
-
1
-
-
-
For Private & Personal Use Only
ww
B
-
-
अध्याय ३ - श्रृंगारकाध्य
६३- १२०
शृंगारकाव्य के अंतर्गत सामग्री - ६३, मत्स्यप्रान्त में भक्ति ३, लक्ष्मरणसंबंधी शृंगार - ६४, भक्ति की अपेक्षाकृत कमी ६५, प्रेम का तात्विक निरूपण - ६६, देवीदास : प्रेमरतनाकर - ९६, सोमनाथ : प्रेमपच्चीसी ८ बख्तावरसिंह : श्री कृष्णलीला - १००, मान कवि : शिवदान चन्द्रिका - १०४, चतुर कवि : तिलोचनलीला १०५, पद मंगलाचरण होरी - १०५० भोलानाथ : लीलापच्चीसी
१०६,
बृजदूलह - ११०, वीरभद्र : फागुलीला ११४, राम कवि : बिरहपच्चीसी : ११६, गीत ११८, मत्स्यशृंगार की विशेषताएं - १२६ ।
-
-
-
-
1
११२, वटुनाथ : रासपंचाध्यायी रसानंद : रसानंदघन ११७, लोक
www.jainelibrary.org