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मत्स्य प्रदेश को हिन्दी साहित्य को देन तो गांवों में बहुत गाया जाता रहा है । इन गीतों में स्थानीय भाषा का प्रयोग हुआ है। मत्स्य प्रदेश के शृगार-साहित्य को हिन्दी के अन्य शृंगारी-साहित्य से तुलना करने पर बहुत कुछ विभिन्नता दिखाई देती है। उनमें से कुछ बातों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है
१. मत्स्य में राधाकृष्ण के श्रृंगार की ओर कवियों का हृदय पूज्यभावनायुक्त रहा। यहाँ के साहित्य में वासनामय काव्य का प्रायः अभाव है।
२. राधाकृष्ण के साथ-साथ राम और सीता तथा लक्ष्मण और उर्मिला के शृंगार संबंधी प्रसंग भी मिलते हैं। यहाँ तक कि शिवजी की होली भी लिखी गई है, परन्तु अश्लील वर्णनों को एकदम कमी है।
३. कवित्त, सवैयों के साथ-साथ इस प्रदेश में पदों का प्रयोग भी बहुतायत से हुआ है और उनके साथ राग, ताल आदि के नाम विधिपूर्वक दिए गए हैं। इन पदों का निर्माण, संभवत: होली के अवसर पर, गायन की दृष्टि से किया गया हो ।
४. अपने इष्ट या पूज्य देवों के शृगार-वर्णन में राजा तथा उनके प्राश्रित कवि दोनों ने ही भाग लिया।
५. मत्स्य के शृगारसाहित्य में संयोग तथा वियोग दोनों का चित्रण किया गया है।
६. सात्विक तथा शद्ध शृगार की दृष्टि से प्रेम का निरूपण भी किया गया और उसके महत्त्व को समझाने की चेष्टा की गई । रीतिकालीन शृंगारी कवियों की तरह अश्लील शृंगार की ओर यहाँ के कवियों का ध्यान नहीं गया।
हमारी खोज में जो शृगार-काव्य मिला वह तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है१. रीति-काव्यों में उदाहरण देते समय
१. नायक-नायिका, २. नखसिख, ३. शृंगार-निरूपण, आदि के रूप में उपलब्ध साहित्य ।
इस प्रकार के साहित्य से हिन्दी का भंडार भरा पड़ा है।
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