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________________ मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन कितिया न जानौ लाल बतिया लिषी है कहा, छतिया जुडावौ यहि पतिया बचाई के ॥ रसनानंद ने एक पुस्तक 'रसानन्दघन' लिखी है । यह पुस्तक बड़ी नहीं है । इसमें केवल २० पत्र हैं और अधूरी सी मालूम होती है, क्योंकि लिखित अंश के पश्चात् तीन चार पत्र सादा छोड़ कर एक दूसरी पुस्तक लिखी गई है । संभव है लिपिकार ने इन तीन चार पत्रों को पुस्तक के पूरी करने के लिए छोड़ा हो, और शायद यह पुस्तक पूरी लिखी भी जाती किन्तु एक बार का छोड़ा हुआ काम कठिनाई से ही पूरा होता है । यह भी हो सकता है कि दूसरी पुस्तक तैयार करने से पहले ३, ४ पत्र छोड़ दिए गए; किन्तु पुस्तक अपूर्ण है । रसानंदघन में उच्च कोटि की कविता मिलती है । पुस्तक का प्रारम्भ इस प्रकार होता है'श्री गणेशाय नमः अथ रस श्रानन्दघन लिष्यते - छप्पे- माथे मुकुट शिषंड तिलक मंडित गोरोचन । दर्पित कोटि कंदप्पि दर्प मद घूमित लोचन ॥ कुंडल मकराकार डुलत झलकलत कपोलन । तडिदिव कटि पट पीत मत्त इमि मल्हकत डोलन ॥ मुष कंज मंजु मुरली धुनित श्रवत सरस श्रानंद श्रवन । जै गोकुलेश मृदुवेश जै गोपमेश गोपी रवन ॥ ' पुस्तक से संगृहीत दो कवित्त Jain Education International चंचलन, पग, रतराज || , १. चाह भरी चंचल चितौनि चष चंचला ते चंचल मरोर मोई हित साज । पीत पट साजै नग भूषण बिराजै नूपुर समाजै सुनि लाजै कोटि हीरा की सी पानि मुसिकानि में रदन प्रभा चीरा चारु चंद्रका चटक चित चुभी भ्राज । जाके भले भाग भयौ आनंद रसालु मंजु, मूरति रसाल वाके लाल की लर्षं मैं श्राज ॥ २. केलि थली कुंज फूली फली हरी भरी रहौ ताप अलि पुंजनि की गुंज उभरी रहौ । १ रसानंद को राधा का इष्ट था । मूरि । रस आनंद की संपदा जियकी जीमनि रोम रोम राधा रमी बंसी धुनि गुन राधा रास विलासनी राधा रस निधि-पुंज । पूरि ॥ राधा सुमन विकासिनी हित के नेंननिकुज ॥ ११७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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