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श्रध्याय ३ श्रृंगार-काव्य
१. यह कविता विशद, स्वच्छ एवं सुन्दर पद-योजना युक्त है, २. पुस्तक के पढ़ने से कविता की अबाधगति लक्षित होती है,
भाषा तो हिन्दी ही है किन्तु पंजाबी मिश्रित है - विशेषतः सर्वनाम तथा कारक चिन्ह,
४. दूसरी प्रति में इसकी भाषा को "रेखता" कहा गया है जिसका अभिप्राय खडी बोली के उर्दू रूप से है,
५. इस पुस्तक के प्रारम्भ और अंत के दो दोहे शुद्ध ब्रजभाषा में हैं, बीच के पचीस छंद पंजाबी मिश्रित हैं ।
काव्य के क्षेत्र में मत्स्य के राजा भी पीछे नहीं रहे । अलवर के बख्तावरसिंह, भरतपुर के बलदेवसिंह तथा करौली के रतनपाल अच्छे कवि थे । बख्तावरसिंहजी ने "श्रीकृष्णलीला " लिखी है जिसमें भक्ति के साथ-साथ राधाकृष्ण संबंधी शृंगार, नखसिख सहित, पाया जाता है । कविता यथेष्ट अच्छी है और उस में प्रवाह भी है, पहला ही दोहा देखें
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विधन हरन मंगल करन दुरद बदन इकदंत परस धरन असरन सरन बुद्धि देव बरवंत |
राजा ने रचना करते समय भक्तिभाव की ओर विशेष ध्यान रखा है जैसा निम्न दोहे से विदित होता है
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राधाकृष्ण सुदृष्टि सौं मम उर भक्ति प्रकास, गढ़ लीला बन दान की वर्षो कृष्ण विलास ।
वास्तव में यह लीला “श्रीकृष्ण दान -लीला " है केवल " श्रीकृष्ण लीला " नहीं जैसा हस्तलिखित प्रति में लिखा गया है ।
पुस्तक में लेखक के नाम आदि का भी उल्लेख है और साथ ही पुस्तक लिखने के उद्देश्य का भी ।' पुस्तक के आरम्भ में कवि अपनी नम्रता और शील का परिचय देता है
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१ कवि का नाम तथा निवास
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राधाकृष्ण उपास है बषतावर निज नाम नरू वंस कछवाह कुल माचाड़ी शुभ ग्राम । उपास्यदेव - राधाकृष्ण
नाम
वंश
ग्राम
- बख्तावर
- नरूवंश, कुल
• माचाड़ी
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कछवाह
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