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अध्याय ३-शृंगार-काव्य
श्रीकृष्ण लीला, उद्धव पचीसी, रास पंचाध्यायी आदि प्रकरण मत्स्य में शृंगार के प्रतिष्ठापक बने। यह साहित्य संयोग तथा विप्रलंभ दोनों प्रकार का था। शृंगार का विश्लेषण करने पर हमें इस निष्कर्ष पर आना पड़ता है कि संपूर्ण नायक-नायिका-भेद भी शृंगार काव्य के अंतर्गत आ जाने चाहिथे क्योंकि उनमें शृंगार के अतिरिक्त और है भी क्या ? किन्तु हमने इसको भी नखसिख के अनुसार रीति के अंतर्गत ही लिया है, कारण वही है कि इस प्रसंग में भी कवियों ने कुछ बंधी हुई प्रचलित प्रणालियों का अनुगमन मात्र किया है और उसे लक्षण तथा उदाहरण के रूप में लिखा गया है।
राजस्थान के साहित्य में राजाओं का व्यक्तिगत विलास भी इस काव्य के अंतर्गत पा सकता है । यद्यपि हमारी खोज में इस प्रकार का साहित्य बहुत कम मिल सका फिर भी हमारा अनुमान है कि उस समय की परिस्थिति को देखते हुए ऐसा साहित्य भी प्रचुर मात्रा में होना चाहिये। हो सकता है यह साहित्य राजाओं के व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होने के कारण प्रचार न पा सका हो । राजाओं द्वारा अनेक त्यौहार मनाये जाते थे, जैसे होली। दरबार में मुसाहिबों के साथ होली खेलने के उपरान्त महलों में भी होली होती थी और कोई कारण नहीं कि कवि की विदग्ध अांखें वहां न पहुँची हों, किन्तु इस प्रकार का साहित्य बहुत ही कम मिल पाया है।
हमारी खोज में कवित्त सवैया अादि प्रचलित शृंगारी छन्दों के अतिरिक्त कुछ पद भी ऐसे मिले हैं जिनका संबंध शृंगार से है। इन प्रसंगों में लक्ष्मण तथा उर्मिला के शृंगार से संबंधित पद बहुत मूल्यवान हैं। इस संबंध में दृष्टव्य है कि
१. लक्ष्मणजी भरतपुर राज्य के इष्टदेव रहे हैं।
२. राधा-कृष्ण संबंधी शृंगारिक पद तो मिलते हैं किन्तु सोता और राम संबंधी पद बहत कम हैं। उमिला-लक्ष्मण संबंधी पद तो हिन्दी में एक मूल्यवान तथा विचित्र प्रसंग होगा किन्तु मत्स्य प्रदेश के कवियों ने लक्ष्मण जैसे त्यागी को भी नायक बना डाला है। इस संबंध में एक विचारणीय बात यह है कि श्री मैथिलीशरणजी के द्वारा इस प्रसंग को लेने पर हिन्दी-संसार में उसे मौलिक उद्भावना बताया गया था किन्तु मत्स्य प्रदेश में डेढ़ सो वर्ष पूर्व इस प्रकार की सरस कविता हो चुकी थी। यह तो नहीं कहा जा सकता कि श्री गुप्तजी को स्फूर्ति प्रदान करने में यह साहित्य कुछ उपयोगी सिद्ध हुना होगा, लेकिन यह बात माननी पड़ेगी कि हमारी खोज के आधार पर उनका यह श्रृंगारी प्रसंग एक दम नया नहीं ।
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