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________________ रोति - काव्य मिलीं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि मूल ग्रन्थ और उसकी प्रतिलिपियों में बहुत थोड़ा अंतर रहा होगा । इसमें संदेह नहीं कि जो रीतिकालीन परंपरा हिन्दी भाषा-भाषी प्रदेश में प्रचलित हो रही थी उसी से मत्स्य प्रदेश भी प्रभावित हुआ और अनेक नवीन रीति-ग्रंथों का निर्माण होता रहा। साथ ही काव्यविवेचन संबंधी प्रामाणिक ग्रंथों को लिपिबद्ध किये जाने का कार्य भी चलता रहा । इस विषय में राजाओं की काफी रुचि थी और उनके दरबारों में रीतिकारों का श्रादर होता था । श्रध्याय २ उस समय वैसे तो अनेक छंद तथा अलंकार प्रचलित थे पर अधिक प्रयोग में आने वाले छंदों की संख्या सीमित थी । निरूपण ग्रन्थों में छंद और अलंकारों की संख्या बहुत बढ़ चुकी थी, परन्तु प्रचलन में नहीं । कविवर सोमनाथ ने अलंकार और छंद के अनेक भेदों का वर्णन किया है, और इसी प्रकार बहुत से अन्य कवियों ने भी । हिन्दी के प्रसिद्ध रीतिकारों की तरह यहाँ के कवि भी प्रचलित तथा अप्रचलित सभी अलंकारों एवं छंदों का सोदाहरण निरूपण करते थे । व्याख्या-प्रणाली इतनी उत्कृष्ट प्रतीत नहीं होती, किन्तु हिन्दी- प्रदेश में जो प्रणाली चल रही थी उससे यह किसी प्रकार कम भी नहीं । भोगीलाल और रसानंद ने हृदयग्राही प्रणाली का अनुगमन किया, और राम तथा ब्रजचंद आदि कवि सरल प्रणाली के पक्षपाती थे । ८६ मत्स्य में जो साहित्य-शास्त्री और सिद्धान्त-निरूपणकर्ता हुए उनकी कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं १. रीति के अंतर्गत उपर्युक्त सभी विषयों का निरूपण किया गया, यद्यपि शृंगार के बाहुल्य से इस रस को 'राजत्व' प्रदान किया गया किन्तु काव्य के अन्य अंगों की भी उपेक्षा नहीं हुई, जैसे श्रृंगारेत्तर रस, ध्वनि, गुण, दोष आदि । Jain Education International २. श्राचार्य मम्मट से प्रभावित कवि नायक-नायिका भेद की ओर अधिक नहीं झुके । उन्होंने उत्तम, मध्यम तथा अधम काव्य का वर्णन उसी प्रकार किया जैसे काव्य-प्रकाश में है । हिन्दी के ग्रन्य रीतिग्रन्थ नायक-नायिकाभेद तथा शृंगार के अन्य उपादानों से अधिक प्रभावित हैं किन्तु मत्स्य प्रदेश में निर्मित रीति-ग्रन्थों में सिद्धान्त का सम्यक् प्रतिपादन विशेष रूप से किया गया है । ३. काव्य - निरूपण में प्रायः सरल शैली का अनुगमन किया गया है, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003396
Book TitleMatsyapradesh ki Hindi Sahitya ko Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotilal Gupt
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1962
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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