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________________ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [860- $62). ९६-१०१ उदये ७ पेढालपुत्ते ८ य पुट्टिले ९ भयए १० इय । मुणिसुब्बए ११ य अरिहा सव्यभावविउ जिणे ॥ [९६] अममे १२ निष्कसाये १३ य निप्पुलाए १४ य निम्पमे १५ । चित्तगुत्ते १६ समाहि १७ य आगमिस्सेण हुक्खइ ।। [९७] संवरे १८ अनियट्टि १९ य विवाए २० विमले इय २१ । देवोवधाए २२ अरिहा अणंत २३ विजए २४ इय आगमिस्सेण हुक्खइ॥[९८] इति आगामियइ कालि 'हुक्खई' होइसइ इसउ अर्थे । 860) 'संपइ य वट्टमाणा' ऋषभादिक चउवीस जिन लोगस्सुज्जोयगरे माहि कहिया छई ति 'संपइ य वट्टमाणा' जाणिवा । 10 61) अथवा जव्वन्य पद वर्त्तमान जिन यथा सीमंधरो जुगंधरु बाहु सुबाहू महाविदेहमि । सुजाय सयंपहो य रिसहाणण गंतविरिओ य ।। [९९] सुरप्पहो विसालो वजहर चंदाणणा जिणा । अवरे तह चंदबाहु भुयगा ईसर नेमिप्पहा य जिणा ।। [१००] 15 सिरि वीससेण महभद देव जसरिद्धि तित्थयरा । पढमाणुओगदिढे वीसं वंदामि तित्थयरे ॥ [१०१] प्रथमानुयोग नामि सिद्धांतु तेह माहि जघन्य पद वर्तमान वीस जिन नाम इसी परि सांभलियइं । यथा श्रीसीमंधरस्वामि १, श्रीयुगंधरस्वामि २, श्रीबाहुस्वामि ३, श्रीसुबाहुस्खामि ४, श्रीसुजातस्वामि ५, श्रीस्वयंप्रभुस्वामि ६, श्रीऋषभाननस्वामि ७, श्रीअनंतवीर्यस्वामि ८, श्रीसूर20 प्रभस्वामि ९, श्रीविशालस्वामि १०, श्रीवज्जधरस्वामि ११, श्रीचंद्राननस्वामि १२, श्रीचंद्रबाहु स्वामि १३, श्रीभुजगस्वामि १४, श्रीईश्वरस्वामि १५, श्रीनेमिप्रभस्वामि १६, श्रीविश्वसेनस्वामि १७, श्रीमहाभद्रस्वामि १८, श्रीदेवस्वामि १९, श्रीयशऋद्धिस्वामि २० । 62) अथ प्रस्तावइतउ जिसी परि वीस जिन विहरमाण छई तिसी परी लिखियइ। जंबूद्वीप माहि पर्व विदेह तणइ उत्तरार्द्धि पूर्व लवणसमद्र समीपि आठमउ पुष्कलावती नामि विजउ। तिहां 25 पुंडरीकिणी नामि नगरी। तिहां श्री सीमंधरस्वामि इसइ नामि तीर्थंकरु विहरइ ।१। तथा अवरविदेह माहि उत्तरार्द्व पश्चिम लवणसमुद्र समीपि पंचवीसमउ वा इसइ नामि विजउ तिहां विजया नामि नगरी तिहां श्री युगंधरस्वामि इसइ नामि तीर्थंकरु विहरइ । २ । पूर्व विदेह माहि दक्षिणार्द्धि पूर्व लवणसमुद्र समीपि नवमउ वत्सु इसइ नामि विजउ तिहां सुसीमा नामि नगरी तिहां श्री बाहुस्वामि इसइ नामि तीर्थकरु विहरइ। ३ । अवरविदेह माहि दक्षिणार्द्धि पश्चिम लवणसमुद्र सभीपि चउवीसमउ नलिणावती 30 नामि विजउ तिहां अयोध्या नामि नगरी तिहां श्री सुबाहुस्वाभि इसइ नानि तीर्थकरु विहरइ। ४ । तथा धातुकी खंड द्वीप माहि बि महाविदेह छई। एकु पूर्व दिसि एकु पश्चिम दिसि । तउ पूर्व महाविदेह तणइ पूर्व विदेहि उत्तरार्द्ध कालोद समुद्र समीपि आठमउ पुष्कलावती नामि बिजउ तिहां पुंडरीकिणी नामि नगरी तिहां श्री सुजात इसइ नाभि तीर्थंकरु विहरइ । ५ । तथा अवरविदेह तणइ उत्तरार्द्धि लवणसमुद्र परपार समीपि पंचवीसमउ वा इसइ नामि विजउ तिहां विजया इसइ नामि नगरी तिहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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