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________________ १६ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$37 - 840 ). ६८-६९ हिं जि परि अट्ठावीस अंतरद्वीप शिखरी पर्वति पुणि छइं । ति सवइ मिलिया हूंता ५६ अंतरद्वीप हुयई । तिहां युगलिया मनुष्यभेद ५६ हूया । अकर्मभूमि त्रीस, यथा-जंबूद्वीप माहि छ, धातुकी खंड माहि बारह, पुष्करवरद्विपार्द्ध माहि बारह, एवंकारइ त्रीस अकर्मभूमि । तिहां युगलियां मनुष्यभेद त्रीस । कर्मभूमि १५, यथा-पांच भरत, पांच ऐरवत, पांच महाविदेह तिहां पनर मनुष्यभेद। ५६, ३०, 5 १५ सवइ मिलिया १०१ ति पर्याप्तापर्याप्त संमूछिम भेदत्रय करी गणिया हूंता त्रिन्हिसई विडोत्तर मनुष्यभेद हुयई। 837) तउ पाछइ अट्ठाणऊसउ देव भेद । चऊद नारकी भेद, अद्वेतालीस तिर्यंच भेद, त्रिन्हिसई विडोत्तर मनुष्यभेद । सवइ मिलिया पांचसई त्रिसट्ठ ति सगलाई जीवभेद । संसार माहि फिरतइ जीवि अभिघातादिकह करी विराधिया संभवई । इणि कारणि भणिउं अभिघातादिकहं दसहं पदहं 10 करी गुणिया हूंता त्रिसोत्तर मिथ्यादुष्कृतपद हुयई। $38) इसी परि जु मिथ्या दुष्कृतपद सूचवतउ इरियावही पडिक्कमइ सु तेतींही जि वार केवलज्ञानु ऊपाडइ । यथा गच्छि एकि लघु क्षुल्लकु एक वरसालइ बाहिरि' बालकहं माहि वाहलइ त्रेपणउं पेट हेठइ दे अनइ तरिवा लागउ । महात्मा आविया, चेला तरता देखी करी विढई । तेतलई गुर आविया । गुरे 15 कहिउं-'महात्माउ! चेलउ लहुडउ भोलउ भागडउ म चडबडावउ' तेतीवार चेलउ परहंसिउ । गुरे भणिउं-'म वच्छ ! उगउ रहि को काई नहीं कहई'। तउ चेल उ घणेरउं परहंसिउ । गलसरण भरिवा' लागउ। गुरे माथइ हाथ दे करी आपणपा आगइ कीधउ । वसति आविया । गुरे इरियावही थिर थिकां' आखरि आखरि अथु चीतवतां हूंता पडिकमी । गमणागमणउं आलोइउं" । तउ पाछइ वर्त्तिए पुणि आलोइउं । चेला आगइ गुरे कहिउं"-'वच्छ ! इरियावही पडिक्कमतां छप्पन्नसई त्रीसां मिथ्या 20 दुष्कृत पद जाणी करी सवहीं जीव" रहई मिच्छामि दुक्कडु दीजइ ।' तउ पाछइ चेल उ गुरुवचन तणइ अनुसारि इरियावही नउ अथु चीतवतउ सवहीं जीवहं रहई मिच्छामि दुक्कडु देयतउ इरियावही पडिक्कमतउ शुक्लध्यानाधिरोहइतउ केवलज्ञानु ऊपाडी" अनेक भविक लोक प्रतिबोधी करी सिद्धि गयउ । 39) तथा कालिकाचार्य पुणि इरियावही मात्र प्रतिक्रमणि मिथ्यादुष्कृत प्रदानि शुद्धा इसउं सांभलियइ । तथा उपदेशमाला माहि पुणि भणिउं पडिवजिण दोस नियए सम्मं च पायवडियाए । तो किर मिगावईए उप्पन्नं केवलं नाणं ॥ [६८] तथा अनेरइ थानकि भणिउं नियदोसे गरहंती गुरुणीपाए सिरेण पणमंती । भवरूवं भावंती मिगावई केवलं पत्ता ।। [६९] 840) इसी परि आलोई पडिक्कमी करी सुद्धचित्तु हुयउ हूंतउ पुनरपि काउसग्ग पायच्छित्ति करी सुद्धिविशेषनिमित्तु इसउं पढइ 25 3 838) 1 L. omits. 2 L. omits. 3 Bh. वढई ति। P. वढइ। 4 L. आव्या। 5 Bh. गुरि । 6 Bh. अडबडावउ । L. दडबडावउ P. वडवडावउ। 7 B. भणिवा। 8 Bh. देई। 9 P. थकां। 10 L. आलोउं । P. आलोवउं। 11 L. गुरि चेला आगइ कहिउं। 12 Bh. L. P. जीवहं। 13 L. ऊपाजावी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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