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831 - $36). ६७]
श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत 531) 'चरथिर जोइसिया दसे'ति । चंद्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र-तारकलक्षण पांच जोइसी देव तणा भेद । मनुष्यलोक माहि चर मनुष्यलोक बाहिरि थिर पांच भेद । सवइ मिलिया दस जोइसी देव तणा भेद ।
$32) 'बारस कप्पे' ति-बारह देवलोक तणा बारह देवभेद । 'अणुत्तरा पंचे' ति विजय, वेजयंत, जयंत, अपराजित, सर्वार्थसिद्धलक्षण पांच अनुत्तर विमान देव । 'नव गेविजे' ति-अवेयक नव, यथाहिडिम-हिटिम पहिला प्रैवेयक रहई सुदर्शनु नामु १ । हिट्ठिम-मज्ज्ञिम बीजा ग्रैवेयक रहइं सुप्रबुद्ध 5 नामु २ । हिट्ठिम-उवरिम त्रीजा अवेयक रहइं मणोरमु नामु ३ । मज्झिम-हिट्ठिम चउथा ग्रैवेयक रहइं सर्वतोभद्रु नामु ४ । मज्झिम-मज्झिम पांचमा अवेयक रहई सुविसालु नामु ५ । मज्झिम-उवरिम छट्ठा प्रैवेयक रहई सुमनसु नामु ६ । उवरिम-हिहिम सातमा ग्रैवेयक रहई सौमनस्यु नामु ७। उवरिम-मज्झिम आठमा अवेयक रहइं प्रीतिकरु नामु ८ । उवरिम-उवरिम नवमा प्रैवेयक रहई आदित्यु नामु ९ । तिहां जि देव ति नव ग्रैवेयक देव । धुर लगी सवइ मिलिया नव नवति देव तणा भेद हुयई। 10
$33) तथा जीवहं रहई छ पर्याप्ति हुयई यथा- आहारपज्जत्ती १, सरीरपज्जत्ती २, इंदियपज्जत्ती ३, आणपाणपजत्ती ४, भासापज्जत्ती ५, मणपजत्ती ६ । तत्र आहारग्रहणशक्ति आहारपर्याप्ति १ । सरीररूपि करी आहारपरिणामन शक्ति सरीरपर्याप्ति २ । इंद्रियरूपि सरीरपरिणामनशक्ति इंद्रियपर्याप्ति ३ । आनपानवर्गणा पुद्गलग्रहण आनपान भणियई । ऊसास नीसास तींहं नइ रूपि आनपानवर्गणा पुद्गलपरिणामन व्युत्सृजन लक्षण आनपानपर्याप्ति ४ । भाषावर्गणा पुद्गलग्रहण भाषारूपि परिणामन व्युत्सृजनलक्षण'15 भाषापर्याप्ति ५ । मनोवर्गणा पुद्गलग्रहण मनोरूपि परिणामन व्युत्सृजनलक्षण मनःपर्याप्ति ६ । ती माह चत्तारि पर्याप्ति पहिली एकेंद्रियजीवहं रहइं हुयइं । विकलेंद्रिय अनइ असन्नी रहइं पांच पर्याप्ति हुयई। सन्नी रहई छ पर्याप्ति हुयइं । तथा च भणितं
___ आहारसरीरिंदिय पजत्ती आणपाण भास मणे । चत्तारि पंच छप्पि य एगिदिय विगलसन्नीणं ।।
[६७] 20 इणि कारणि जि जीव पर्याप्ति पूरी करइं ति पर्याप्त कहियई। जि पर्याप्ति पूरी करई नहीं अथवा करिसिइं ति अपर्याप्त कहियई । इणि कारणि भणिउं ति पर्याप्तापर्याप्तभेदद्वय करी गणिया हूंता अडनऊय सउ अट्ठाणऊ सउ देवभेद हुयई ।
34) चऊद नेरइय सात नरक । यथा- धर्मा, वंसा, शेला, अंजना, रिष्टा, मघा, माघवती नामक तीहं तणा सातइ नारकी पर्याप्तापर्याप्त भेदद्वय करी चऊद नारकीभेद ।
25 535) 'तिरिय अडयाला' इति - तिर्यंच अद्वेतालीस भेद । यथा विकलेंद्रिय-बेइंद्रिय १ त्रेइंद्रिय २ चउरिंद्रिय ३ भेदइतउ त्रिविध । पृथिवीकाय ४, अकाउ ५, तेउकाउ ६, वाउकाउ ७, अनंतवनस्पतिकाउ ८, सूक्ष्मबादर भेदद्वय करी १३, प्रत्येक वनस्पतिकाउ १४, जलचर १५, थलचर १६, खचर १७, उरपरिसर्प १८, भुजपरिसर्प १९, गर्भज-संमूछिम भेदद्वय करी जलचरादिक पांचइ दसभेद हुयई इति चउवीसभेद २४, ति सवइ पर्याप्तापर्याप्त भेदद्वय करी तिर्यंच अद्वैतालीस भेद ४८। 30
836) 'तिन्निसया य तिउत्तरभेया पुण सव्वमणुयाणमिति मनुष्यभेद ३०३ । यथा- अंतरद्वीपमनुष्य छप्पन्न भेद, यथा-क्षुल्लहिमवंत पर्वत नी दाढ पूर्वसमुद्र माहि अनइ पश्चिमसमुद्र माहि कोणे विस्तरी छई । तिहां सात सात अंतरद्वीप छइं । एवंकारइ अट्ठावीस अंतरद्वीप' क्षुल्लहिमवंति छई। इसी
$33) 1 B. has dropped the line between ......व्युत्सृजनलक्षण...... । $36) 1 Bh. omits अंतर।
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