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________________ XXVI रचना पूर्ण की उसी दीपावली के दूसरे दिन श्री विनयप्रभ उपाध्याय ने उक्त गोतम रास की रचना की अर्थात संवत १४११ के दीपावली के दिन तरुणप्रभाचार्य की रचना पूर्ण हई। और सं.१४१२ के प्रथम दिन अर्थात् कार्तिक सुदी १ के दिन (जो गोतम गणघर का कैवल्य ज्ञान प्राप्ति का दिन मान जाता है) उस दिन उक्त रासकी रचना हुई थी। तरुणप्रभाचार्य उस समय पाटण में थे और विनयप्रभ उपाध्याय खंभात में थे। जिस प्रकार तरुणप्रभाचार्य कृत प्रस्तुत बालावबोध प्राचीन गुजराती की एक उत्तम कृत्ति है, इसी प्रकार विनयप्रभ उपाध्याय रचित 'गौतम रास' भी प्राचीन गुजराती भाषा की एक विशिष्ट पद्य रचना है। ___ बहुत वर्षों पहले गुजराती भाषा के प्राचीन इतिहास की दृष्टि से विद्वानों में वादविवाद चला था और उसमें बहुतसे विद्वान गुजराती पद्य रचना के आदि कवि नृसिंह मेहता को मानते थे। उस वादविवाद के प्रसंग पर स्व. श्री मनसुखलाल किरतचन्द मेहता ने अपने एक निबंध में यह स्थापित करने का प्रयत्न किया था कि गौतम रास गुजराती भाषा की सबसे प्राचीन तथा उत्तम कोटि की पद्य रचना है। इत्यादि . परन्तु इसके बाद तो हमने नैमीनाथ चतुस्पदिका नामक एक सुन्दर प्राचीन गुजराती पद्य रचना प्रकट की थी जो विनयचन्द्र सूरि की बनाई हुई है, और वह गौतमरास के पूर्व साठ सत्तर वर्ष पहले रची गई थी। ___प्रस्तुत बालावबोध एक प्रकार से प्राचीन गुजराती गद्य रचना की एक विशिष्ट कृति मानी जाने योग्य है। परन्तु हमारे अवलोकन में इससे भी पूर्व की कुछ ऐसी बालावबोधात्मक गद्य रचनाएँ देखने में आयी हैं। कल्प सूत्र के बालावबोध के कुछ त्रुटित प्राचीन लिखित पत्र हमारे देखने में आये हैं जो संवत १३६० के आस पास के लिखे हुए थे। इससे पूर्व की एक बालावबोधात्मक रचना हमें जेसलमेर के एक भंडार में मिली थी जो प्रायः संवत १२८० और ९० के बीच में लिखी हुई ज्ञात होती है। यह रचना जिन दत्त सूरि रचित कुछ कुलकात्मक प्रकरणों पर है। इसकी भाषा शैली प्रस्तुत बालावबोध के समान है। और जो थोड़े से पन्ने इस रचनाके हमें मिले हैं उनकी लेखनशैली भी भाषाकीय दृष्टि से प्रायः व्याकरणसंगत है। हमारा विचार था कि राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला में उसको यथावस्थित रूपमें प्रकट कर दी जाय; परन्तु समयाभाव के कारण हम जबतक उस ग्रन्थमाला के संचालक रहे तबतक वैसा न कर सके। हमारे खयाल से यह प्राचीन राजस्थानी और गुजराती भाषा के प्राचीनतम गद्यात्मक कृति के रूप में माने जाने योग्य हैं। इस ग्रंथ का सर्व प्रथम आलेखन करानेवाले धनिक श्रावक बलिराज के वंश का कुछ परिचय . तरुणप्रभ सूरि के प्रस्तुत बालावबोध नामक ग्रंथ का सर्वप्रथम आलेखन कराने वाले धनिक श्रावकमंत्रीदल वंशीय ठक्कुर बलिराज के गुण और यश का वर्णन करने वाली जो प्रशस्ति ग्रन्थकार ने ग्रन्थान्त में लिखी है उससे ज्ञात होता है कि ठक्कुर बलिराज अपने समय में बहुत बड़ा धनवान तथा राजमान्य और जनसम्मान्य गृहस्थ था। इसके कई पूर्वजों के तथा वंश के अनेक गृहस्थों के उल्लेख पट्टावली आदि में मिलते हैं। दिल्ली एवं राजस्थान के कई स्थानों में भी इस वंश के अनेक धनी गृहस्थ रहते थे। जो समय-समय पर तीर्थयात्राएँ, प्रतिष्ठाएँ, आचार्यपद स्थापनाएँ आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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