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________________ २२२ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [ $617 ) ८९५-८९६ एक एक चैत्यभावि करी बत्रीस चैत्य छई। इसी परि वीस अनइ बत्रीस बावन चैत्य नंदीश्वरि दीववरि छइं। रुचकु इसइ नामि तेरमउ द्वीपु छइ। कुंडलु इसइ नामि इगारमउ द्वीपु छइ । तिहां चत्तारि चत्तारि चैत्य छई। एवं सर्व संमीलनि कीधइ साठि चैत्य हुयई। ति साठि चैत्य सउ सउ जोयण दीर्घपणि' पंचास पंचास जोयण पिहुलपणि बहत्तरि बहत्तरि जोयण ऊंचपणि छइं॥१७॥ 'जिन भवने ति-जिनभवन तणी साठि चतुर्मुखा चतुर । बीजां जि के ऊद्धलाक तिर्यग्लोकि अधोलोकि चैत्य छई ति सर्वइ त्रिमुख त्रिद्वारु छई । 'उभयत्रे'ति-त्रिमुखिहि, चतुर्मुखिहिं । 'प्रतिवक्त्रं' मुखि मुखि । मुखमंडप १, अक्षाटकमंडप सहित प्रेक्षामंडप २, मणिपीठ स्तूप ३, मणिपीठ धर्मध्वज ४, मणिपीठ चैत्यतरु ५, पुष्करिणी लक्षण ६, छ छ पदार्थ छई ॥१८॥ ___ 'त्रिमुखे ' इति । त्रिमुखिहि चतुर्मुखिहिं चैत्यि अट्ठोत्तरुसउ अट्ठोत्तरुसउ जिनप्रतिमा वांदउं 10 नमस्करउं । स्तूपाश्रिता' इति । स्तूपगत त्रिद्वारि चैत्यि द्वादश प्रतिमा चतुर्दारि चैत्यि सोल प्रतिमा वांदउं नमस्करउं । 'यथासंख्यं ॥ अनुक्रमि करी ॥१९॥ 5617) 'प्राच्यामि' ति । जि के शाश्वत चैत्य विश्व माहि छई तीहं सविहुँ गभारा माहि पूर्वाभिमुख सत्तावीस श्रीऋषभ नाम जिनप्रतिमा छई ! दक्षिणाभिमुख सत्तावीस श्रीवर्द्धमान नाम जिन प्रतिमा छई। पश्चिमाभिमुख सत्तावीस श्रीचंद्रानन नाम जिनप्रतिमा छई। उत्तराभिमुख सत्तावीस श्री 15 वारिषेण्य नाम जिनप्रतिमा छई। एवं सत्तावीस चउकु अट्रोत्तरु सउ जिनप्रतिमा गर्भग्रहगत जाणिवी। तथा तिणिहिं जि प्रकारि · स्तूपगत ' स्तूप वर्तमान प्रतिमा पुण जाणिवी । किसउ अथु ! पूर्वदिशि श्रीऋषभजिनप्रतिमा। दक्षिणदिारी' श्रीवर्द्धमान जिनप्रतिमा। पश्चिमदिशि श्रीचंद्रानन जिनप्रतिमा। उत्तर दिशि श्रीवारिषेण्य जिनप्रतिमा एक एक जाणिवी ॥२०॥ 'मेरुष्वशातिरेके' ति-एक जंबूद्वीपि बि धातुकी खंडि, बिपुष्करवर द्वीपार्द्ध, एवं पांच मेरु पर्वत 20 छई ! पाक एकि मेरुपर्वति चत्तारि चत्तारि वन छई यथा भूमीइ भद्दसालं मेहलजुयलंमि दुन्नि रम्माई । नंदण सोमणसाइं पंडगपरिमंडियं सिहरं ॥ [८९५] भूमितलि भद्रशालु इसइ नामि वनु मेहल जुयाल किसउ अर्यु मेखला पर्वत मध्यभाग कहियई। तिहां नंदनवन सौमनस्यवन इसां नामहं करी बि वन छई । 'पंडगपरिमंडियं सिहरमि'ति । पंडकु इसंह 25 नामि वनु मेरुशिखरि छइ। तीहं च उहूं भद्रशालादिकहं वनहं माहि चउहूं दिशि एक एक चत्य भावि करी चत्तारि चत्तारि चैत्य छई। एवंकारइ एक मेरुप्रतिबद्ध सोल चैत्य छई। एवं अन्य मेरुचउक्क संबद्ध पुण सोल सोल चैत्य छई । इति सोल पंचउं अती इसी परि पंचमेरुगत असी चैत्य हुयइं। इसीपरि एक असी चैत्यहं तणी 'वक्षस्कारेष्वशातिरपरा चेति । महाविदेह क्षेत्र माहि विजयांतराल वर्तमान सोल वक्षस्कार पर्वत छई। पंचमहाविदेहगत सोल पंचउं असी इति असी वक्षस्कार पर्वत हुंयइं। तिहां एक एक चैत्य भावि 30 करी बीजी असी चैत्यहं तणी । वर्षे नगेषु त्रिंशदिति ।। हिमवंत १ महाहिमवंत २ पव्वयानि सढ ३ नीलवंता य ४ । रूप्पी ५ सिहरी ६ एते वा सहरगिरी मुणेयव्वा ॥ [८९६] पूर्वापर-समुद्रलशोभयपातु सुवर्णमय देवका जोयणसय समुच्चु हिमवंत पर्वतु भरतक्षेत्र परभागवर्ती छइ। विसई जोयण समुच्चु सुवर्णमयु पूर्वापरसमुद्रलग्नोभयप्रांतु महाहिमवंतु पर्वतु हैमवत क्षेत्र परभागवती छइ। $617) 1 Bh. दिसि । 2 B. Bh. इसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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