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________________ २०० षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$558-560) ८०६ हूंतउ आपणइ थानकि जा।" इसी परि परिछविउ हूंतउ सु लक्ष्मीधरु ब्राह्मणु सलज्जु थिक' वसंत. पुरि गयउ । जिणदासु धनसार्थवाह सरसउ लाजतउ हूंत वाणारसी ऊपरि चालिउ। 8558) जेतलइ लक्ष्मीधरु वसंतपुरि गयउ तेतलइ जिणदास तणइ वियोगि दुक्खितु अतिविक्रमवंतु नामि महीरक्षितु देखइ । तउ पाछइ लक्ष्मीधरु जाई करी राय आगइ जिनदासु' अनइ महा5 मात्य बिहुँ तणउ संबंधु कहइ । सु वृत्तांतु सांभली करी अतिविक्रमवंति राजेंद्रि वसु नामि महामात्यु गुप्ति कीध। 'जेतीवार जिंणदासु देखतु हुयइ जिम तेतीवार तेह तणउ वइरी मारउं।' इसा कोपवशइतउ महादुक्ख घातिउ। अथ घडिया जोयणी सांढि चडी करी पुरुषद्वय सहायु रायु आपणपई वाणारसी नगरी जिणदास लेवा गयउ। जिम कोई जाणइ नहीं तिम जाई जिणदासु मनावी सरसउ करी राउ वसंतपुरि आविउ। जिणदासु मन माहि चीतवइ 'वसु पुनरपि महामात्यपदि थापिवउ'। 10 तउ पाछइ राजेंद्र कन्हा जिणदासु.सर्वैश्वर्य मुद्रा लही करी जणनायकु वीनवी करी मंत्रिपदु वसु रहई अपावइ। .. . 8559) अनेरइ दिनि उद्यानपालि आवी राउ वधाविउ । “ महाराज ! तुम्हारइ क्रीडोद्यानि तपु तपता हूंता शंकरनाम महऋषि' रहइं केवलज्ञानु ऊपनउं"। महांतु प्रीतिदानु उद्यानपाल रहई दे करी अतिविक्रमवतु नरेश्वरु जिनदास सहितु उद्यानवनि पहुतउ । मुनि प्रणमी करी धर्मोपदेश सांभली 16राउ पूछइ । “भगवन् ! माहरा मित्र रहई जिनदास रहई आपदसहित संपद किसा कारण लगी हुई ?', मुनि भणइ, “कोशांबी नामि नगरी तिहां मातृभक्त धनदत्तु नापि वाणियउ। सुमित्रा नामि तेह नी माता जया नामि दयिता। 'दानु एकु गृहस्थहं रहई धर्मु मुख्यवृत्ति करी कर्तव्यु। इस वचनु सुमित्रा तेह आगइ कहइ । एकदा तिणि मतिमंति माता तणउं मनु दानाभिमुखु जाणी करी भार्या सहिति हूंतइ माता आगइ कहिउँ । “मात ! सुपात्रहं अनइ कृपापात्रहं रहई यथारुचि आपणइ हाथि करी दानु 20 दह"तउ पाछइ वासनापरायण' हूंती सुमित्रा सुश्राविका कृपापात्रहं सुपात्रहं रहइं यथारुचि दानु आपणइ हाथि करी दियइ । जिम जिम माता दानु दियइ तिम तिम हर्षितचित्तु हूतउ दत्तु कहइ “ दइ, दइ॥ ताहरइ पसाइ माहरइ घरि घणउं धनु धान्यु छइ" तदनंतरु दानफलु' निश्चितु जा अभिग्रहु तिणि लीधउ 'विधिवत् ज्ञान-दर्शन-चारित्र-पात्रहं अनइ कृपापात्रहं प्रति दानु दे करी तउ भोजनु करीसु" तथा चोक्तं25 अभयं सुपत्तदाणं अणुकंपा उचियकित्तिदाणं च । दोहिं वि मुक्खो भणिओ तिन्नि वि भोगाईयं दिति ॥ तउ पाछइ पुत्रि अनइ बहू बिहूं बहुकृतभक्ति अनुमत हूंती निवारिताऽरति समाधि सहित निजु आभिग्रहु पूरती हूंती, स केतलु एकु कालु वोलइ । 8560) अनेरइ दिनि नैमित्तिके दारुणि दुर्भिक्षि कहिइ हूंतइ जया नामि वहू आपणा भर्तार 80 दत्त आगइ कहा, “धुरिहं दारुणु दुर्भिक्षु दीसइ । ताहरउं घरु पुत्र पौत्रादि परिवार संपूरितु वर्त्तइ । विणि कारणि आपणी जणणी हे कुटुंबाधार दान हूंती निवारि"। अथानंतर दत्ति माता दान हूंती [८०६] 8557) 10 P. थकउ । 8558 1 P. जिम दास । 2 P. घडवा पडिया। 3 Bh. को। 4 Bh. adds मई। 5P. जण ना राउ। 8559) 1 P. महाऋषि । 2. P. omits. 3 B. P. धनीदत। Bb. also has धनी-but later corrected to धन-। 4 P. सहित। 5 Bh. कहिई। 6. P. omits. 7 P. वासणा-। 8 Bh. omits सु । 9P. दानु-1 8560) 1 Bh. कहियइ । 2 P. जननी । 3 P. हुंता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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