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________________ १७० षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$489). ६४८-६५० पाठिविउ'। तिणि कारणि, अहो महीपाल ! स राजपुत्रिका रूपशोभा करी रति रहई दत्तजयपत्रिका वर्त्तइ । रूपलक्ष्मी करी जितलक्ष्मीपुत्रु जु छइ भीमु नामि तुम्हारउ पुत्रु तेह रहइं प्रमाणु करउ"। दूति इसइ अर्थि वीनविइ हूंतइ सिंहश्रेष्ठ मुख सामुहउं जोयतउ हूंतउ कीर्तिपाल राजा भणइ । “सिंहश्रेष्ठिन आपणपा रहई आगे भेदु को नही । तिणि कारणि माहरइ थानकि थाई, तुम्हे भीम नागपुरि ले करी । पहुचउ । बांधव ! ए संबंधु करउ ।” दिग्विरति-विरति-व्रत भंग अनइ अनर्थदंड-विरति-व्रत भंग भयभीतु हूंतउ सिंहु अधोमुखु थाई रहिउ । राजेंद्र रहइं उतरु न दियई। लगार एक कुपितलोचन हूंतउ राउ भणइ, “ किस बांधवु ! एउ संबंधु बंधरु नहीं जु तउं ऊतरु कोई न दियइं?" आकारइंगितादिकहं चिह्नहं करी सकोपु राउ जाणी करी सुधाशीतलवाणी राउ जिम शीतलु थाइ, तिणि कारणि सिंह बोलइ । “ ईहां हूंतउ जोयण सउ अधिकेरउं नागपुरु हुयइ । इणि कारणि व्रतभंगभय वशइतउ हां 10 नागपुरि न जाउं ।" इसइ भणिइ हूंतइ सिंह ऊपरि कीर्तिपालु राउ कोपि चडिउ । जिम घृतसेकि करी वैश्वानरु ज्वलइ तिम प्रज्वलिउ । तउ राउ कोपवशि हूंतउ भणइ । “जह किम जोयणसय ऊपरि नहीं जाइ तउ हडं तू रहई बांधीकरी जोयणसहस्र ऊपरि निक्षिपाविसु ।” तउ सिहुं समुत्पन्नमति हूंतउ पुनरपि भणइ । “महाराज! ताहरउ विरहु हउं सहीं सकउं नही, तिणि कारणि अहंकाररहितु हूंतउ 'जोयण सय ऊपरि हां जाउं नही' इसा ऊतर तुम्हं आगइ कहां" इसइ वचनि राउ उपशांतकोपानलु हूंतउ सरसउं प्रबलु दलु दे करी भीम सरसउ सिंहु चलावद। कटक आगइ, कुमार भीमकुमार आगइ भणिउं । “जं कांई सिंहु कहइ तं तुम्हे करिवउं" तउ पाछइ रायाभियोगि अकामू थिकउ सिंह भीमकुमार सरसउ चालिउ' हूंतउ कुमार आगइ संसारासारता गुप्तवृत्ति' करी कहइ बहिरन्तविपर्यासः स्त्रीशरीरस्य चेद्भवेत् । तस्यैव कामुकः कुयोद्गृध्द्रगोमायुगोपनम् ॥ [६४८] यकृत्शकन्मल श्लेष्म, मज्जास्थिपरिपूरिताः। स्नायुस्यूता बहिर्रम्याः, स्त्रियश्चर्मप्रसेविकाः ॥ [६४९] 8489) तउ भीमकुमार रहई महोपशम वशइतउ भववासना त्रूटी गई । मुक्तिकन्यानुरक्त चित्तु' हूंतउ भीमुकुमारु श्री अनइ स्त्री तृण ही सरीखी न देखइं । जोयणशत मार्गि आविउ हूंतउ सिहं आघउं पियाण करइ नहीं। जेतीवार बीजा महता पूछई तेतीवार कूडा ऊतर करइ । जइ दिन ५-६ हूया तिहां तउ पाछइ बीजे महते भीमकुमार आगइ कहिउँ । “कुमारवर! राजद्रि अम्ह आगइ सिंह छानऊं इसउं कहि छई। जइ किमइ किहाई गयउ हूंतउ सिंह आघउ न चालई तउ तुम्हे बलात्कारि बांधी करी आघउं पियाणउं करावि जिउ'। तिणि कारणि जु तुम्हे भणउ तउ सिंह बांधी करी चलावियइ ।" भीमु कहइ, “ आजु जउ पियाणउं आघ सिंह न करई तउ काल्हि तुम्हे राजादेशु' करिजिउ"। इस मंत्रिवचनु एकांति भीम सिंहु आगइ कहइ । संसार निरास बुद्धि हूंतउ सिंहु भीम 30 आगइ भण न किश्चिदत्र संसारे, निस्सारेऽस्य शरीरिणः । शरीरमपि न स्वीयं, स्वीयमस्तीह कस्यचित् ॥ [६५०] इत्यादि वैराग्यकारकु बहु भणी करी कटक हूंतउ रात्रि समइ प्राहरिक लोकि सूतइ हूंतइ नीसरिउ, कुमारु पुण सरसउ नीसरिउ। " किणिहिं गिरि वणोद्देशि' जाई करी पादपोपगमनु अनशनु" 20 8498) 1 P. पाठविउ । 2 P. जयदत्त- । 3 P. आगइ। 4 Bh. को भेदु is corrected to भेदु को। 5B.addsन। 6P. थकउ । 7 P. चालियउ । P. संसारता। 9 P. गुप्ति । 10P. स्त्रीशरस्य 11 P.गोमाय-। 8489) 1 P. मुक्त-12P. omits. 3 P. पयाणउं । 4 Bh. onjits. 5 Bh. adds it in the margin P. omits. 6 P. कालि। 7 P. राजादेसु । 8 Bh. कहइ!9 Bh. -देसि । 10 P. omits अन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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