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________________ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [ $392 - $394 ). ४६६-४७० मिथ्यादृष्टि रथयात्रादिदर्शननिमित्तु कुतूहलवसि आसमंतात् गमनु आगमनु तिणि हूंतइ 'आगमणे' गृहादि माहइतर तिणिहिं जि कारणि निर्गमनु निस्सरणु तिणि हूंतइ 'निग्गमणे' । जु कर्मु बाधउं इसउं पाछा हूंतडं आवइ छइ । तथा मिध्यादृष्टि देवकुलादिकि स्थानि अवस्थानि हूंतई । अथवा मिध्यादृष्टि रथादिदर्शननिमित्तु मार्गि तेह आवता सीम अवस्थानि हूंतइ । तीही जि मिथ्यात्व देखिवा निमित्तु चंक्रमणि 5वेगि करी गमनि हूंतइ । अथवा तिहाई जि प्रेक्षणकादि प्रेक्षणनिमित्तु ओरइ' परइ परिभ्रमणि हूं | किसइ हूंतइ | 'अणाभोगे' अनुपयोगे अज्ञानभावि । 'अभिओगे' राजाऽभिओगादिकि तदुक्तं 10 १२४ रायाभिओगो य १ गणाभिओगो २ बलामिओगो ३ देवयाभिओगो ४ । गुरूनगो ५ वृत्तितारो ६ य छ छिंडियाओ जिणसासमि ॥ [ ४६६ ] नियोगे श्रेष्ठिपदादिलक्षणे । शेषं पूर्ववत् । ५ । (392) अथ सम्यक्त्वातिचारप्रतिक्रमणनिमित्तु भइ | संका १ ख २ विगिंछा ३ पसंस ४ तह संथवो ५ कुलिंगीसु । सम्मत्त सइयारे पडिक्कमे देसियं सव्वं ॥ [ ४६७ ] दर्शनमोहनीय कर्मोपशमादि समुत्थु अर्हदुक्त तत्त्वश्रद्धानरूपु शुभु आत्मपरिणामु सम्यक्त्वु कहिय । 15 8393 ) तिणि सम्यक्त्व परिणामि हूंतइ जीव रहईं तत्त्वबुद्धि हुयइ इणि कारणि ईहां नवतत्त्व विचारु लिखियइ । जीवाजीवा पुनं पावा - Ssसव संवरो य निञ्जरणा । बंधमुक्खो यता व तत्ता हुंति नायव्वा ॥ [ ४६८ ] जीवतत्त्व १ अजीवतत्त्व २ पुण्यतत्त्व ३ पापतत्त्व ४ आश्रवतत्त्व ५ संवरतत्त्व ६ निर्जरातत्त्व 20 ७ बंधतत्त्व ८ मोक्षतत्त्व ९ एवं नाम नवतत्त्व 'नायव्वा' जाणिवां । चउदस चउदस बायालीसा, बासीय हुंति बायाला । सत्तावन्नं बारस च नव भेया कमेणेसिं ॥ [ ४६९ ] (394) जीवतत्त्व चऊद भेद १ अजीवतत्त्व चऊद भेद २ पुण्यतत्त्व बइतालीस भेद ३ पापतत्त्व बियासी भेद ४ आश्रवतत्त्व बइतालीस भेद ५ संवरतत्त्व सतावन भेद ६ निर्जरातत्त्व बारस भेद ७ बंधतत्त्व चत्तारि भेद ८ मोक्षतत्त्व नव भेद ९ क्रमि करी नवहीं तत्त्व तथा भेद विस 25 छत्तर हुयई । तथाहि Jain Education International efiदिय सुहमियरा सन्नियर पणिदिया बि ति चऊ | अपत्ता पत्ता कमेण चउदस जियट्ठाणा | एकिंद्रिय पृथिवीकाय अप्काय तेयकाय वाउकाय वनस्पतिकाय । लक्षण कहियई । ति सूक्ष्म पुणि बादर पुणि एवं भेद बि एकेंद्रिय । जीहं रहई मनु हूयइ ति 'सन्नी' । जीहं रहई 30 मनु न हूयई ति 'इयर' 'असन्नी' कहियई । [ ४७० ] एवं भेद ब पंचेंद्रिय । स 'बि ति चऊ' इति बेइंद्रिय तेइंद्रिय चउरिंद्रिय सहित हूतां भेद सात । सात पर्याप्तापर्याप्त बहुं भेदहं करी चऊद भेद । ए चऊद जीवस्थान | §391 ) 1 Bh. उरइ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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