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________________ [ ४०४] [ ४०५ ] Estatesबाला बोधवृत्ति सीलगुणन्वय पडिमोवसग्ग पोसह समंतकिरियाणं । विविहट्ठाणाइ तहा नायव्वमुवासगदसाए || नगरुञ्जाणवणाई पाओगमणाई अंतकिरियाओ । अंतगडाणं बोही पनप्पर अट्टमंगंमि || पंचुत्तरवासीणं चवणुष्पत्ति सुधम्मकह बोही । अंतरिया कुसलं नवमंगे देसियं सव्वं ॥ अत्तर सणस नागवन्नाण वइयरं चेव । पन्हावागरणंगे दिहं विजाण माहप्पं || दुविहं चं विवागस्यं दुक्करसुकरेहिं कम्मभेएहिं । नायकहा दिट्ठाणं पयाण बहुविह वियप्पेहिं || [ ४०६ ] [ ४०७ ] [ ४०८ ] $ 359 ) कालभणनप्रसंगि सर्वसिद्धांत नामविचारादिकु संक्षेपिहिं कहिउं । एउ पूर्वोक्तु आगमपाठ विषइ कालु तिणि कालि पढइ तर श्रुत आचारु अनेरइ कालि पढइ तर अतीचारु अथवा कालवेला गर्जित वीजखवणादि रहितु जु कालु सु स्वाध्यायकालु । तत्र कालवेला बि दीहसमइ बि रात्रिसमइ हुयई । पूर्वाह्न आठमी वडी घडी कालवेला । अपराधि पुणि आठमी वडी घडी कालवेला । ऋतुबद्ध कालि 15 गर्जिति हुयइ हूंतइ बि पहर सज्झाउ न कीजई । वीजोल्लासि एकु पहरु सज्झाउ न कीजई । तिणि कारण कालवेलादि रहितु स्वाध्यायकालु तिणि कालि स्वाध्यायु करइ श्रुताचारु, अन्यथा अतीचारु १ । 5 10 20 25 30 ११० (360) अत्र कथा | नगरि एकि महऋषि एकु रात्रिसमइ श्मसानप्रदेशि' स्वाध्यायपर' वसइ । तर रात्रि पूर्वार्द्ध तणी आठमी घडी कालवेलासमइ स्वाध्यायु करतउ देखी श्रीशासनदेवतां महीयारी नइ रूप आवी करी प्रतिबोधिउ, अकाल स्वाध्याय हूंतउ निवारिउ १ । (361) विन द्वादशावर्त्त वंदनकादिकु, गुरु कन्हा नीचासनसेवनादिकु कीजइ तर श्रुताचारु । अनेरइ प्रकारि अतीचारु २ । अत्र सीहासणे निसन्नं सोवागं सेणीओ नरवरिंदो । वि मगर पयओ इ साहुजणस्स सुयविणओ | [8359 - 8364). ४०४-४११ [ ४०९ ] इसी परि श्रेणिक जिम गुरुविनउ करइ तर श्रुतविषइ विनयाचारु । अनेरइ प्रकारि अतिचारु २ । 8362-3 ) बहुमानु मन तणउ अनुरागु गुरु नइ विषइ, सु बहुमानु विद्यासफलीभावकारणु जिस श्रीगौतमस्वामि रहई भगवंत श्रीमहावीरविषइ हूंतउ तिसउ करिवउ । तथा च भणितं - भो विणीय विणओ पढमगणहरो समत्थ सुयनाणी । जाणतो व मत्थं विम्हियाहियओ सुणइ सव्वं ॥ [ ४१० ] [ ४११ ] इसी परि बहुमानु गुरुविषइ करइ तर बहुमानाचार, अनेरइ प्रकारि अतीचारु ३ । (364) उपधानु जेह सिद्धांत नउ जिसउ तपु छइ तिस तपु करी सिद्धांतु वाचियइ । तउ सिद्धांत नउ उपधानाचारु । अनेरइ प्रकारि अतीचारु ४ । Jain Education International $360 ) 1 Bh. श्मशान देसि 2B स्वाध्यायरस । गरूयाणं बहुमाणो सुच्चिय जो माणसो पसाउ ति । पडवीओ पुण मायावीणं पि दीसंति ॥ 3 Bh. प्रतिषेधिउ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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