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________________ १०८ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$355 - 357 ). ३८३-३९० बारसवासस्स तहा अरुणुववायाई पंच अज्झयणा । तेरसवासस्स तहा उट्ठाणसुयाईया चउरो ॥ [३८३] चउदसवासस्स तहा आसीविसभावणं जिणा बिति । पन्नरसवासगस्स य दिट्ठीविसभावणं तह य ॥ [३८४] सोलसवासाई सु य इकुत्तरवडिएसु जहसंखं । चारणभावणमह सुविणभावणा तेयगनिसग्गा ॥ [३८५] ऐगूणवीसगस्स य दिट्ठीवाओ दुवालसममंगं । संपुन्नवीसवरिसो अणुवाई सव्वसुत्तस्स ॥ [३८६] इति पंचवस्तुक सिद्धांतगाथानुसारि करी जाणिवउ । 10 3 55) यथा दीक्षाग्रहणि कीधइ त्रीजइ वरसि पहिलङ आचारप्रकल्पु आचारांगु पढियइ । चउथइ वरसि सूयगडु बीजउ आंगु पढिवउं । 'दसा-कप्प-व्यवहारा' इति दशाश्रुतस्कंध कल्प व्यवहार ए त्रिन्हि सिद्धांत पांचमइ वरसि पढियई। ठाणांगु समवायांगु ए बि अंग आठमइ वरसि पढियई । दसमइ वरसि विवाहा विवाहप्रज्ञप्ति नामु पांचमउं आंगु पढियइ । पांचमइ आंगि पढिइ आगिलां छइ आंग ज्ञाताधर्मकथा १, उपासकदशा २, अंतगडदशा ३, अनुत्तरोपपातिकदशा ४, प्रश्नव्याकरण ५, 10 विपाकश्रुतनामक यथारुचि पढिवा लाभई । इगारमइ वरसि खुड्डिया विमाणपन्नत्ती, महल्लिया विमाणपन्नत्ती अंगचूलिया वग्गचूलिया विवाहचूलिया ए पांच सिद्धांत पढियई । बारहमइ वरसि अरुणोपपात धरणोपपात वेलंधरोपपात वेसमणोपपात देवेंद्रोपपात नाम पांच सिद्धांत पढियई। तेरहमइ वरसि उठाणसयं समुद्राणसुयं नागपारियावलिया निरयावलिया नाम चत्तारि सिद्धांत पढियई। चऊदमइ वरसि आसीविस भावणा । पनरमइ वरसि दिट्ठीविस भावणा पढियइ । सोलमइ वरसि चारण भावणा। सत्तरमइ वरसि 20 सुविण भावणा । अढारमइ वरसि तेयगनिसग्गा पढियइ । इगूणवीसमइ वरसि दिहिवाओ दृष्टिवादाभिधानु द्वादशमु' अंगु । वीसमइ वरसि सर्वश्रुत रहइं अणुवाई पाठक हुयइ ।। $356) दृष्टिवादु चऊद पूर्व, तीहं नां नाम, यथा-उत्पादु पूर्व १, अग्रायणीउ पूर्व २, वीर्यप्रवादु पूर्व ३, अस्तिनास्तिप्रवादु पूर्व ४, ज्ञानप्रवादु पूर्व ५, सत्यप्रवादु पूर्व ६, आत्मप्रवादु पूर्व ७, कर्मप्रवादु पूर्व ८, प्रत्याख्यानप्रवादु पूर्व ९, विद्याप्रवादु पूर्बु १०, कल्याणनामधेउ पूर्षु ११, प्राण25 वायु पूर्व १२, क्रियाविशालु पूर्व १.३, लोकबिंदुसारु पूर्व १४, इति । 8357) प्रस्तावइतउ पूर्वहं तणउं प्रमाणु पुणि लिखियइ। उप्पाए पय कोडी १ अग्गेणीयंमि छन्नऊ लक्खा २। वीरियम्मि सयरि लक्खा ३ सहि लक्खा अत्थिनथिमि ४॥ [३८७ ] एगापउणा कोडी नाणपवायंमि होइ पुव्वंमि ५ । एगा पयाण कोडी छच्च सया सच्चवायंमि ६ ॥ [३८८] छव्वीसं कोडीओ आयपवायंमि होइ पयसंखा ७। कम्मपवाए कोडी असीइ लक्खेहिं अब्भहिया ८॥ [३८९] चुलसीइ सयसहस्सा पच्चक्खाणंमि वन्निया पुव्वे ९। इक्का पयाण कोडी दस सहस सहिया य विजाए १०॥ [३९०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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