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________________ 10 15 8322). ३४३.-३४६] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत सूरोदयपहरं जा राइयमावस्सयं च चुन्नीए । ववहारेणं गंथेण पुरिमद्धं जाव भणियं च ॥ [३४३] पडिकमणउं बिउं भेदे । एकु इत्वरिकु यावत्कथिकु । सु पुणि देवसिउ अनइ राइउ पक्खिउ चाउम्मासिउ संवच्छरिउ कहियइ । अथवा उत्तमाथु अणसणु । तेह तणइ कारणि जु पडिकमणउं कीजइ सु उत्तमाथु पडिकमणउं पुणि इत्वरिकु कहियइ । व्रतप्रतिपालनारूपु पडिकमणउं यावत्कथिकु कहियइ ।। तिणि पडिकमणइ सकल जीवितव्य माहि जि के अतीचार कीधा हुयइं तीहं तणा पडिकमणकरणइतउ । तत्र उत्सर्गपदि समणेण सावएण य अवस्स कायव्वयं हवइ जम्हा । अंतो अहो निसिस्सा तम्हा आवस्सयं नाम ॥ [३४४] अवस्सकरणइतउ आवश्यकु पडिकमणउं कहियइ । तथा च भणितं सपडिकमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमगाण जिणाणं कारणजाए य पडिकमणं ॥ [३४५] तत्र देवसिउ-अहु दिवसु तेह नइ अंति, किसउ अथु ? जिसइ पडिकमणसूत्रगुणनकालि सूर्य तणउं अर्द्धबिंबु हुयइ तिसइ समइ कीजइ । राइउ पुणि मुहुपत्ति चोलपट्टय कप्पतिगं दुनि सिज रयहरणं । संथारुत्तरपट्टो दस पेहा उग्गए सूरे ॥ [३४६] इसा भणनइतउ जिसइ मुहुपत्ती १, रयहरणु २, चोलपटु ३, संथारउ ४, उत्तरपट्टु ५, त्रिन्हि कल्प-बि पच्छेवडी ७, एक लोचकु ८ दुन्नि सिज्ज एक ऊर्णामय एक लूगडा नी निसेज ९ एकु प्रभात चोलपट्टकु १०' एवं दश उपधि उपकरण पडिलेहण कीधी सूर्यु ऊगइ इसइ समइ राइउ पडिकमणउं कीजइ । अपवादपदि जेतीवार कालसाधना करी न सकियई तेतीवार 'आरयणि पढमपहरं' इसा 20 भणनइतउ रात्रि पहिला पहरसीम देवसिउ पडिकमणउं कीजइ। इसउं भणिउं सूर्योदय आरंभी करी पहिला पहर दिवस सीम राइउ पडिकमणउं चूर्णिणकथन तणइ अनुसारि करी कीजइ । व्यवहारसिद्धांत तणइ अनुसारि पुरिमझे जाव भणियं च । पूर्वार्द्ध सीम बिहुं पहरहं सीम राइउ पडिकमणउं कीजइ । इसी परि उत्सर्गापवाद जाणी करी वेलाई जि पडिकमणउं करेवउं न पुणि जेतीवार परिवारिउ तेतीही वार पडिकमणउं करेवउं । 25 322) अथ सामाइक पाखइ पडिकमणउं कीजइ नहीं इणि कारणि पहिलउं सामाइककरण विधि लिखियइ । पाछिलइ पहरि दिवस तणइ वसति मुहुंती पाटला पडिलेहण कीधी हूंती मुहंती पाटला ले करी धर्माचार्य आगइ, अथवा' स्थापनाचार्य आगइ आवी पादभूमि मुहंती सउं त्रिन्हिवार दृष्टिप्रदानपूर्व पडिलेही करी मुहंती मुहबारि दे करी हाथ जोडी करी त्रिन्हिवार पडिलेहिय भूमि पाटलउ वामपार्श्वि मूंकी करी, इच्छामीत्यादि भणी एकु खमासणु दे 'सामा इक मुहुपत्तियं पडिलेहेमि' इसउं कही 30 खमासमणु दे करी ऊभा होई 'इच्छामि खमासमणो' भणी खमासमणु दे करी ऊभडू थिकउ वेदिका माहि बाहु करी मुहुंती पडिलेही एक खमासमणि 'सामाइयं संदिसावेमि' इसउं भणी बीय खमासमणि 'सामाइयं ठाएमि' इसउं भणी तइउ खमासमणु दे अर्द्धावनतगात्रु हूंतउ त्रिन्हि नमस्कार कही त्रिन्हिवार 8321) 1 B. omits between ९-१०. $322) 1 Bh. omits. 2 Bh. omits खमासमणु दे करी। 3 Bh. ऊतडू। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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