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F274 - 3280). २७२-२७३] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत
8274) पूर्वप्रतिमाषटुसमाचार प्रतिपालनापरु मास ७ सीम सचित्ताहारवर्जकु हुयइ जिणि स सप्तमी अचित्तनाम प्रतिमा ७ ।
5275) पूर्वप्रतिमासप्तकसमाचारप्रवर्तक मास ८ स्वयं आरंभवर्जकु हुयइ जिणि स अनारंभनाम अष्टमी मतिमा ८। - 276) प्रेष्यहीं कन्हां आरंभु न करावई पूर्वसमाचारु मास ९ जिणि करइ स प्रेष्यारंभ- 5 वर्जिका नाम नवमी प्रतिमा ९।
277) उद्दिष्टकृताहारवर्जकु । किसउ अथु ? आत्मनिमित्तकृत भोजनवर्जकु जु काई घरि सर्व साधारणु भोजनु तेह रहइं कारकु पूर्व समाचारधारकु मास दस उद्दिष्ट भोज्यवर्जिका नाम दसमी प्रतिमा १० ।
$278) क्षुरमुंडु अथवा लुंचितु रजोहरण-पात्रपरिग्रही श्रमणभूतु यतिसमाचारकारी' निर्ममत्वु 10 स्वज्ञातिकुलहं विहरइ, भिक्षाभोजी ति 'श्रमणभूता' इति नामिका एकादस मासिका एकादसी प्रतिमा ११। इति संक्षेपि' करी श्रावकप्रतिमा विचारु ।
"279) केई एकि संप्रति प्रतिमा श्रावकहं रहई करावई। केई एकि पुणि चित्तचलाचलादि भावि करी प्रतिमासमाचार रहइं निरतीचारता करी दुष्करत्वइतउ तथाविध धृतिबलसंहननादिकहं तणा अभावइतउ पुणि न करावई । तथा निषेधवचनु पुणि तीर्थोद्गालि नाम प्रकीर्णक माहि दीसइ । यथा- 15
साहूणग्गोयरओ वुच्छिन्नो दूसमाणुभावाओ । अजाणं पणवीसं, सावयधम्मो य वुच्छिन्नो ॥
[२७२ ] अत्र साधुमहात्मा पूर्विहिं अप्रमादप्रवृत्तिनिमित्तु 'अग्गोयरओ' धरता, किसउ अर्यु ? वाम कुहणी चांपी करी चोलपट्टकु राहवता जु सु 'अग्गोयरओ' कहियइ, इसउ आम्नाउ छइ । सु अग्गोयरउ दुक्खमानुभावइतउ वुच्छिन्नउ विच्छेदि गयउ प्रमादबहल कालभावि करी साधु चोलपट्टकु दवरादिकहं 20 तणइ आधारि धारिवा' लागा। 'अजाणं पणवीसं' ति आर्यिका साध्वी ति पंचवीस उपकरण पहिरती, ति पुणि विच्छेदि गयां । 'सावयधम्मो य वुच्छिन्नो' इति एकादस प्रतिमारूपु श्रावकधर्मु विच्छेदि गयउ. इसा व्याख्यानइतउ एकादश प्रतिमा श्रावक तणी विच्छेदि गई इति । गतं प्रसङ्गागतम् । भावना १२ पूर्विहिं भणी जिम तिमहीं जि जाणिवी । 280) खित्तं ९ यथा
-25 जिणभवण १ विंब २ पुत्थय ३ चउविहसंघो य ७ सत्त खित्ताई। जिजुद्धरो ई ८ पोसहसाला ९ साहारणं च दस ॥
[२७३ ] • जिन्नुद्धार रहइं जिनभवनग्रहणि करी ग्रहणइतउ एकु जिनभवन १, बीजउं जिनबिंबु २, त्रीज पुस्तक ३, साधु चउथउं ४, साध्वी पांचमउ ५, श्रावक छट्ठउं ६, श्राविका सातमउं ७, पौषधशाला आठमउं ८, साधारण संबलकु नवमउं ९ क्षेत्रु । ईंह नवं क्षेत्रहं श्रावकि आपणउं वित्तबीजु 30 वाविवउं । यदाह
2 Bh. पिहरती।
8278) 1 Bh. सामाचारी- 2 Bh. adds हिं। $279) 1 Bh. धरवा। 8280) 1 Bh. जिनुद्धारो, omits ई। 2 Bh. नवह। 3 Bh. वाविउं।
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