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________________ ५९ $164 - $165). १९९-२०२] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत करी विशेषि करी भणइ, 'खमासमणाणं' क्षमाश्रमण महामुनि भणियई, तीहं संबंधिनी ज दैवसिकी आशातना तिणि करी । स पुणि किसी ? इत्याह 'तित्तीसन्नयराए' त्रेत्रीस आशातना माहइतउ अन्यतर एक अनामनिर्दिष्ट तिणि करी। $164) ति पुणि नेत्रीस आशातना ए कहियइंपुरओ पक्खासन्ने गंता ३ चिट्ठण ३ निसीयणा ३ ऽऽयमणे १०। आलोयणऽ ११ पडिसुणणे १२ पुव्वालवणे १३ य आलोए १४ ॥ [१९९] तह उवदंस १५ निमंतण १६ खद्धा १७ ययणे १८ तहा अपडिसुणणे १९ । खद्ध २० त्ति य तत्थगए २१ किं २२ तुम २३ तजाय २४ नो सुमणे २५ ॥ [२००] नो सरसि २६ कहं छित्ता २७ परिसं भित्ता २८ अणुट्टियाइ कहे २९।। संथारपायघट्टण ३० विट्ठ ३१ च ३२ समासणे ३३ आवि ॥ [२०१] 10 गुरु आगइ बिहुं पार्श्वहं पूठि आसन्नगमनि' त्रिन्हि आशातना ३, स्थानि ६, निषीदनि बइसिवइ ९, बाहिरि गया गुरुतउ पहिलउं आचमनि १०, पहिलउं गमनागमनालोचनि ११, राति समइ कउणु सूयइ जागइ वा इसइ गुरि पूछिइ हूंतइ जागताई शिष्य रहइं गुरुवचन तणइ अपडिसुणणि १२, साधु श्रावकादि समागमनि गुरुतउ पहिलउं आलपनि-आभाषणि १३, अनेरा आगइ पहिलउं भिक्षा आलोई पाछइ गुरु आगइ भिक्षा आलोचनि १४, इसी परि उपदर्शनि १५, निमंत्रणि १६, गुरु 15 अणपूछी आपणी रुचि साहु रहइं 'खद्धु त्ति' प्रचुरु देयतां १७, गुरु रहइं अरसविरसु दे करी आपणपई स्निग्धमधुरादिभोगइतउ अदनु १८, राति जिम बीजे ई कालि अप्रतिश्रवणि-गुरुवचन तणइ अप्रतिश्रवणि १९, 'खद्ध' त्ति गुरु प्रति निष्ठुर भणनि २०, जिहां हुइ तिहां ई जि थिक उ गुरु रहई प्रतिवचनु देयतां 'तत्थगए' २१, गुरु प्रति 'किं' इति वचनि भगिवउं 'मत्थएण वंदे' २२, गुरु आगइ 'तउं' कथनि 'तुम्हे' इसउं कहिवउं २३, 'अमुक ग्लान तणउं वैयावृत्त्यादि कार्यु करि' इसइ कथनि गुरि कहिइ 20 हूंतइ 'तुम्हे काइं न करो' इसउं भगनु तज्जायवचनु २४, गुरि तत्त्वु कहतइ हूंतइ शून्य चित्तकरणु 'नो सुमणु' तिणि करी २५, 'न सम्यक् समरइ तउं' 'एउ अथु समथु नहीं' इसा वचन तणइ भणनि २६, आपणइ कथा कथनि करी गुरुकथाच्छेदनि २७, हवडां भिक्षावेला हुई इति सभाभेदनि २८, सभा अणऊठी हूंती आपणपा रहइं वचनपाटव जाणाविवा कारणि सविशेष व्याख्यान कथनि २९, गुरुशय्यादि रहइं पादादिघट्टनि चरणादि लगाडणि ३०, 'विट्ठ' त्ति-गुरुशय्यादि उपवेशनि ३१, एवं उच्चासनि ३२, 25 समासनि ३३, ए नेत्रीस आशातना भणिता। $165) हवडाइ जि आशातना माहि काईं एक विशेषि करी भणइ 'जं किंचि मिच्छाए' कुत्सितु आलंबनु 'यत् किंचित्' कहियइ । तहाहि 'आलंबणाणि' दुहा भवंति । चडियाऽऽलंबणाणि, पडियाऽऽलंबणाणि च । जि मिथ्यात्वबहुलजीव हुयई ति पडियालंबण आश्रई। जि सम्यग्दृष्टि जीव हुयई ति चडिया-30 लंबण आश्रई । तथा च भणितं जाणिज मिच्छदिट्ठी जे पडियालंबणाणि गिन्हति । जे पुण सम्मदिहि तेसि मणो चडणपइडीए ॥ [२०२] $164) 1. Bh आसन्नि। 2 Bh. has, instead, अनंगीकरणि। 3 Bh. कहियइ। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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