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§70-§71). १०४-१०८]
श्री तरुणप्रभाचार्यकृत
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yoपाद हाई लेवा न वांछई इति गाथार्थः । ' इत्यादि' वचनइतर साधु रहई द्रव्यस्तव किसी परि उचित हुई । तथा श्रावकि पुणि साक्षात्कारि पूजासत्कार कीधाई जि छई इणि कारणि श्रावकहीं रहई किसी परि उचितु हुयइ । इसउं जेतीवार को भणइ तेतीवार कहियइ । साधु रहई द्रव्यस्तव निषेधु करणरूपता करी छई । कारणु अनइ अनुमति मोकलिय जि साधु रहई छ । अकसिणपवत्तगाणं विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो । संसार करणे दव्वत्थए कूवदितो ||
[१०४ ]
‘अकसिण पवत्तग’ देसविरत, 'विरयाविरय' काईं विरत काईं अविरत विरताविरत, श्रावक श्रमणोपासक तींहं रहई एउ द्रव्यस्तवु खलु निश्वरं जुगुतु करिवा समुचितु । 'संसारपयणुकरणे' संसारलघुकरणे द्रव्यस्तवे 'कूत्र दिहंतो' द्रव्यस्तव विषइ कूपु दृष्टांतु । अथ भावार्थ: - जिम कूपि खणीतइ सहू धूलि भरियइ जलि नीसरियइ हूंतइ सगलू मलु जलपखालि करी जाइ तिम द्रव्यस्तवि कीजतइ 10 जदपि हिं जीवविनासु संभवइ तथापि हिं द्रव्यस्तवि कीधइ कीजतइ अनेकहं जीवहं रहई संबोधु ऊपजइ । तर पाछइ जि संबुज्झई ति सगलाई जीव जां जीवई तां अथवा जां संसारु तां हिंसा न करई । तथा च भणितं
पुढवाईयाण जई विहु होइ विणासो जिणालयाहिंतो । सिया विसद्दिस्सि नियमओ अस्थि अणुकंपा || एयाहिंतो बुद्धा विरया रक्खंति जेण पुढवाई तो निव्वाणगया अबाया आभवमिमाणं ॥
[१०५]
[१०६ ]
इत्यादि उपदेस दानि करी करावणु जइ रहई संभवइ । भगवंत तणइ विशिष्टपूजा दर्शनि प्रमोदानुभवादिकहं करी अनुमति पुणि संभवइ । इणि कारणि 'पूयणवत्तियाए' 'सक्कारवत्तियाए' इसउं साधु रहई भणिवा जुक्तउं ।
(71) तथा हि
सुव्वइ य वयर रिसिणा कारवणं पि य अणुट्ठियमिमस्स । atri तहा गया देसणा चैव ॥
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[ १०७ ]
'श्रूयते वज्रस्वामिना' सांभलियइ जु वयरस्वामि रिषि 'इमस्स' एह द्रव्यस्तव तण कारवणु 'अणुट्ठि' कीधरं । यथा - माहेश्वरी नामि नगरी, तिहां श्री वज्रस्वामि पर्युषणा पर्वि संघ नइ उपरोधि 25 ज्वलनप्रभ नाम व्यंतरदेव कन्हा अनइ श्रीदेवी कन्हा पुष्पलक्ष अनइ सहस्रपत्र कमल आणी करी देवपूजा करावी प्रभावना गरूई कीधी बौद्ध नी मानग्लानि रची । तथा चोक्तं
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to गाओ माहेसरी कुसुमाणि जेणमाणित्ता ।
तचनियाण माणो मलीओ संघुन्नई विहिया |
[१०८]
'तच्चन्निया' बौद्ध तींहं न मानु अहंकारु मलिउ ऊतारिउ । शेषं स्पष्टम् । वायगगंथेसुं उमा- 30 स्वातिवाचकविरचित प्रशमरत्यादि प्रकरणहं माहि 'एयगया देसणा ।' द्रव्यस्तव करावण विषइ नी देसना उपदेस पद्धति छ । जउ इसी परि साधु रहई द्रव्यस्तव विषइ करावणु अनइ अनुमति छ तर जिणि श्रावकि पूजा सत्कार aar हुई तेह रह भावपूजारूपता करी भक्ति अतिसयसंपत्ति निमित्तु पूजासत्कार प्रार्थनालक्षण एह न भणनु अधिकपुष्पनिबंधनु भणनीऊ जु हुयइ |
(70) 1 Bh. किम for किसी परि । (71) 1 B. Bh. वंसेसु ।
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