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प्राकृत के इस ग्रन्थ का अभी तक हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ था । ऐसे व्यापक उपयोग के ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद समाज की एक महति आवश्यकता है। हमें प्रसन्नता है कि अब यह कार्य भी संपन्न प्राय है। मेरे सहयोग से प्रवर्तिनी श्री सज्जन श्रीजी महाराज साहब व विदुषी साध्वी श्री शशिप्रभाश्रीजी म. सा. की शिष्या साध्वी श्री सौम्यगुणाश्रीजी म. इस ग्रन्थ के अनुवाद, समीक्षात्मक एवं गवेषणात्मक अध्ययन पर काम कर रही हैं। उनका यह कार्य पूर्ण होने पर इस ग्रन्थ के दूसरे भाग के रूप में प्राकृत भारती अकादमी द्वारा प्रकाशित किया जायेगा।
हार्दिक प्रसन्नता है कि सज्जनमणि आर्या रत्न श्री शशिप्रभाश्रीजी म० सा. के सदुपदेश से श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ, सांचोर ने संयुक्त प्रकाशन हेतु अर्थ सहयोग प्रदान किया है, अतः हम इन दोनों के आभारी हैं।
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म. विनयसामर निदेशक प्राकृत भारती अकादमी
जयपुर
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