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विधिप्रपा ।
atest read उवीसथओ वि जं विणिद्दिट्ठो । आवस्सयाउ न पिहो जुज्जइ ता तेसिमुवहाणं ॥ २७ ॥ आवस्स ओवहाणे ताणुवहाणं कथं समवसेयं ।
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ओवहाणे य पिहो तक्करणे होइ अणवत्था ॥ २८ ॥ roup उत्तरमिह नवकारो आइमंगलत्तेणं । बुच्चइ जया तयचिय सामइयऽणुप्पवेसो से ॥ २९ ॥ जया य सयण भोयणनिज्जरहेउ' पढिज्जए एसो । तया सतत एव हि गिज्झइ अन्नो सुयक्खंधो ॥ ३० ॥ इह-परलोयत्थीणं सामाइय विरहिओ वि वावारो । दीसह नवकारगओ तदत्थसत्थाणि य बहूणि ॥ ३१ ॥ नवकार पडल- नवकारपंजिया - सिद्धचक्क माईणि । सामाइयंगभावो इमस्स गंतिओ तम्हा ॥ ३२ ॥ पढमुच्चारणमित्ते विणुष्पवेसो हविज्ज सामइए । एयस्स सनहा जइ ता नंदणुओगदाराणं ॥ ३३ ॥ तदणुष्पवेसओ च्चिय तवचरणं नेय जुज्जइ विभिन्नं । दीसइ य कीरमाणं जोगविहीए य भन्नंतं ( भिन्नत्तं ) ॥ ३४ ॥ किं वा भिन्नते सहा वि सामाइयाउ एयस्स । arrr पंचमंगल मिचाई अणुचियं वयणं ॥ ३५ ॥ इय भेयपक्खमणुसरिय जइ तवो कीरई नमोकारे । ता को दोसो नंदणुओगद्दारेसु व हविज्ज || ३६ ॥ इरियावहियाईयं सुयं पि आवस्सयस्स करणम्मि । अणुपविसइ तम्मितयन्नया य भिन्नं हि तेणेव ॥ ३७ ॥ भत्ते पाणे सयणासणाइसुत्तं पि जायइ कयत्थं । तिन्न वि कडइ तिसिलोइयत्थुइच्चाइसुत्तं पि ॥ ३८ ॥ आवस्सए पवेसो जइ एसि सङ्घहावि य हविज्ञ । तो पिढणं एसि सबेसिं कह घडिज त्ति ॥ ३९ ॥ जं च इयरेयरासयदू सणमेवं च बुच्चर इमाण । पाढेण विणा ण तवो तवं विणा नेसिं पाढो ति ॥ ४० ॥ तं पहु असणं जह पवइउमुवट्टियस्सऽणुन्नायं । सामाइयाइयाणं आलावगदाणमतवे वि ॥ ४१ ॥ एवं जइ पढिए वि नवकाराईसु ताणमुवहाणं । सविसेस गुणनिमित्तं कारिज्जइ को णु ता दोसो ॥ ४२ ॥ foresari पि कारिजइ मुक्खदंडयाइतवं । हु सत्थुत्तं पि निसिज्झह उवहाणं ही महामोहो ॥ ४३ ॥
1 A. निज्जराहेऊ । 2 B दारेण ।
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