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________________ संक्षिप्त जीवन-चरित्र । महाधर सेठने आचार्यश्रीकी आज्ञाको सहर्ष स्वीकार की और अच्छे मुहूर्तमें सुभटपालको समारोह पूर्वक सं० १३२६ (१) में दीक्षा दिलाई । आचार्यश्रीने नवदीक्षित मुनिको खूब तत्परतासे शास्त्रोंका अध्ययन कराया एवं साम्नाय पद्मावती मंत्र समर्पित किया-जिससे थोडे समयमें मुनिवर्य प्रतिभाशाली गीतार्थ हो गये। सं० १३४१ में किढिवाणा नगरमें श्रीजिनसिंह सूरिजीने उन्हें सर्वथा योग्य जान कर अपने पट्टपर स्थापित कर श्रीजिनप्रसूरि नामसे प्रसिद्ध किया। इसके कुछ समय पश्चात् श्रीजिनसिंह सूरिजी वर्गवासी हुए। ___ श्रीजिनप्रभ सूरिजीके पुण्यप्रभाव और गुरुकृपासे पद्मावती देवी प्रत्यक्ष हुई। एक बार इन्होंने देवीसे पूछा कि-'हमारी किस नगरमें उन्नति होगी?' पद्मावतीने कहा-'आप योगिनी-पीठ दिल्लीकी ओर विहार कीजिये । उधर आपको पूर्ण सफलता मिलेगी। सूरिजी देवीके सङ्केतानुसार दिल्ली प्रान्तमें विचरने लगे। ग्रन्थ रचना सं० १३५२ में योगिनीपुर (दिल्ली) में माथुरवंशीय ठकुर खेतल कायस्थकी अभ्यर्थनासे 'कातन्त्र विभ्रम' पर २६१ श्लोक प्रमाणकी वृत्ति बनाई । सूरिजी के उपलब्ध ग्रन्थोंमें यह सर्वप्रथम कृति है । ___ सं० १३५६ में श्रेणिकचरित्र-द्वयाश्रय काव्यकी रचना की । सं० १३६३ का चातुर्मास अयोध्या किया। वहां साधु और श्रावकोंके आचारोंका विशदसंग्रह रूप इसी विधिप्रपा ग्रन्थको विजयादशमीके दिन रच कर पूर्ण किया । सं० १३६४ में वैभारगिरिकी यात्रा करके वैभारगिरिकल्प निर्माण किया और कल्पसूत्र पर 'सन्देह विषौषधि' नामक वृत्ति बनाई। ___ सं० १३६५ के पौषमें अयोध्या (१) अजितशान्तिकी बोधदीपिका वृत्ति, (२) पौष कृष्णा ९ को उपसर्गहरकी अर्थकल्पलता वृत्ति, (३) पोष सुदि ९ के दिन भयहर स्तोत्रकी अभिप्रायचन्द्रिका वृत्ति बनाई। इन कुछ वर्षोंमें सूरिजीने पूर्व देशके प्रायः समस्त तीर्थोंकी यात्रा कर, कई कल्प, स्तोत्र इत्यादि रचे । संवत् १३६९ में मारवाड देशकी ओर विचरते हुए फलौधी तीर्थकी यात्रा कर वहांका स्तोत्र बनाया । कहा जाता है कि सूरिमहाराज प्रतिदिन एकाध नवीन स्तोत्रकी रचना करनेके पश्चात् आहार प्रहण करते थे। इसके फल स्वरूप आपने ७०० स्तोत्र' जितने विशाल स्तोत्र-साहित्यकी रचना कर जैन मुनियोंके सामने एक उत्तम आदर्श उपस्थित किया । आपके निर्माण किये हुए स्तात्रोंकी सूची पीछे दी गई है। इस विशाल स्तोत्र-साहित्यमेंसे अब केवल ७५ के लगभग ही उपलब्ध हैं । इनमें कई यमकमय, चित्रकाव्य, आदि अनेक वैशिष्ट्यको लिये हुए हैं, जिससे सूरिजीके असाधारण पाण्डित्यका परिचय मिलता है। सूरिजीने संस्कृत, प्राकृत और देश्य भाषामें इस प्रकार सेंकडों ही स्तोत्रोंकी रचना की, और उसके साथ फारशी भाषामें भी उन्होंने कई स्तोत्र बनाये जो जैन साहित्यमें एकदम नवीन और अपूर्व वस्तु है । १ यहां तकका यह वृत्तान्त 'प्राकृत प्रबन्धावली' अन्तर्गत श्रीजिनप्रभसूरि प्रबन्धसे लिखा गया है। २ उपदेशसप्तति (सं० १५.३ सोमधर्मगणिकृत) एवं सिद्धान्तस्तवावरि । अवचूरिकारने इन स्तोत्रोंको, तपागच्छीय सोमतिलकसूरिको, श्रीजिनप्रभसूरिने पद्मावतीके सङ्केतसे तपागच्छका भावी उदय झात कर, भेंट करना लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
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