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________________ प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात की बत्था[i] धन जोड़िया, नह चलसी सत्थाह । मरदां अस्थां मांणिया, जुग रहसी कत्थाह' ॥ ५ हो रावां हो रजियां, हो सोहड़. भला[ल्लाह । सूरां सपुरसां तणी', जुग रहसी गला[ल्ला]ह ॥ ६ ईती श्री रावत म्होकमसींघ हरीसीघोतरी बात । म्हाराजधिराज म्हाराज श्री बहादुरसीघजी क्रत संपूर्ण । किसनगढ राजस्थान । सं० १६६५ चैत्र बद १३ लीषी जैपुरमै" ।। १. की बत्था' चलसी कत्थाह – संसारमें हाथ फैला-फैला कर धन जोड़नेसे क्या लाभ है ? यह साथ नहीं चलेगा। शूरवीर धनका उपभोग स्वयं करते हैं और युगमें उनकी कथाएं कही जाती हैं। २. रोहड़ - सुभट, वीर। ३. सापुरसां तणी - शूरवीरोंकी। ४. गलांह - बातें । बातके लिये 'गल्ल' शब्द आज भी पञ्जाबो में प्रचलित है । संभवतः ___ गल्ल शब्द संस्कृत 'गल्प' से बना है। ५. महाराजधिराज''बहादुरसीघजी - महाराजाधिराज बहादुरसिंघजी किशनगढ़ के महाराज थे जो किशनगढ़ राज्यके संस्थापक किशनसिंहजी राठोड़के बाद पांचवीं पीढ़ीमें रायसिंहासन पर बैठे। बहादुरसिंघजीका शासन-काल सन् १७६४से सन् १७८१ ई० तक रहा है। ६. ख. प्रतिका पुष्पिका लेख यह है ॥ इोती परतापसींघजीरी बात संपुरन ॥ ३२॥ ग. प्रतिको पुष्पिका यह है--- ॥ इति श्रीपरतापसिंघ ने मोहकमसिंघ हरीसीघोत रावत देवघडका धणीरी बात संपूरण ॥ दुहा सोरठा माहाराज श्री बादरसिंघजीने सिंघवीजी श्री चंद्रभाण कहीयो। . सोरठा- राज बाहावर रूप, त्याग बाहादर हद तवां । वात बाहादर भूप, त्रिजड् बाहादर हद तवां ॥ दूहा- बाण तजो रस प्रादरी, व्है सिध ससी मुषि काम । मगसिर वाढै स्याम चलू, बारस भोम प्राराम ॥ ॥ इति श्री वारत समपुरण लोणतंग भ्राह्मांमण प्रोदीच मगनेस दौलतराम श्री कल्याणरस्तु सुभं भवस्तु ॥ श्री श्री सवंत १६०[.] प्रसाड सुद ३ त्रीतीया भोमवासर श्री। श्री श्री ॥ श्री॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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