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विशेष अध्ययन और योग्यताका परिचय मिलता है। साथ ही सम्पादकने वार्तामोंसे सम्बद्ध प्रतियों और विषयों पर परिशिष्ट एवं भूमिकामें अध्ययन-पूर्वक विस्तारसे लिखा है जिससे पाठकोंको अध्ययनमें विशेष सुविधा प्राप्त होगी।
प्रस्तुत पुस्तकके प्रकाशन-व्ययका अर्धांश केन्द्रीय भारत सरकारने प्रादेशिक भाषा-विकास-योजनाके अन्तर्गत प्रदान करना स्वीकार किया है तदर्थ हम आभार प्रदर्शित करते हैं ।
आशा है कि राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालाके हमारे प्रिय पाठकोंको प्रस्तुत प्रकाशन रुचिकर प्रतीत होगा।
मुनि जिनविजय
सम्मान्य सञ्चालक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान,
जोधपुर
जयपुर, ता० १२ अक्टूबर '६० ई.
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