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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात [ ४३ बिहसतौ बिळकुळतो अळवळियो भवर' हुवो थको ताषड़ो कंवरांरा साथनू लेने तुरी तोरिया । जका पैलांरा घणा थाटमै ओघाट घाट जिकण उपर अोरिया । जठे पड़णहार पड़िया। अर सिरोहियांरा सार झड़िया । चढिया घोड़ा गांव भेळ दीधो । नीसांण आपरो षड़ो कीधो।
पाछासू तोपषांनों ने हरोळरो साथ' आयौ तिकां गांव तो भेळयौ हीज पायो। रावत प्रतापसिंघ बडा सांमान नै बड़ी फौजारा घसार लीधा थका गढ आंण लागा। पर बिसररां @िबागल ठोड़ ठोड़ बागा। दोहा-षगां उलंघा कर षिवै'", चीत असंगा चाय।
वागां सीधू बीर डंक", लग्गा रावत आय ॥१ चडिया छोह बहादुरा, जड़िया जरद जवांन ।
रूड़िया त्रंबक राडरा, अड़िया भुज असमान' ॥ २ १. अळवळियो भवर - अलबेला युवक । २. ताषड़ो - पुष्ट, तेज, तगड़ा। ३. तुरी तोरिया - घोड़े चलाये। ४. पैलारा' 'प्रोरिया -विरोधियोंकी भारी सेनामें जो विशेष वीर थे उन पर आक्रमण
किया। ५. गांव भेळ दीधो- गांव नष्ट कर दिया। ६. नीसांरण - निशान, चिन्ह, ध्वजा । ७. हरोळरो साथ - हरावल अर्थात सेनाके अग्रभागका साथ । ८. घसार - समूह । ६. बिसररां' 'वागा - युद्धके नगारे स्थान-स्थान पर बजे। १०. षगां' "षिवं - अपार वीरतासे तलवारें चमकाते हैं । ११. चीत''चाय - चित्तमें शत्रुओंसे लड़नेको चाहना करते हैं । १२. वागां' 'डंक - सिंधूराग होने पर और युद्ध के नगारे बजने पर । १३. छोह - क्षोभ, क्रोध। १४. जरद - जर्व, रक्त वर्णके, तमतमाते हुए रंगके । १५. रूड़िया त्रंबक राड़रा - युद्ध के नगारे बजे । १६. अड़िया भुज असमांन - भुजाएं पासमानके (माकाशके) जा लगीं।
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