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________________ वात देवजी बगडावतारी श्रथ वात' देवजी " बगडावतांरी" 4 सहर अजमेर वडौ गढ । तेथ राजा वीसलदे चहवांण राज्य करे । वीसलदेरे वास' हररांम चहवांण रहै । सु वडौ सिकारी, शब्दवेधी | सु सिकार नित्य खेलै । तिण नगर माहै कोको साह रहे । तिरै बेटी नांम लोलां । सु बालरंड' । तिका तपस्या करें पोहकररा पाहड़ां मां है । सु इसड़ी तपस्या करें । मास मास अंन न खावै । निरवस्त्र रहै । धूप सीत वरषा माथै° सहै । एक दिन पाछिली राति लीलां पोहकरजी में स्नान करि नींसरी १. बात - सं. वार्ता, कथा, राजस्थानी गद्य साहित्यका एक प्रकार | राजस्थानी साहित्यमें हजारों ही वार्ताएँ लिपिबद्ध और मौखिक रूपमें प्राप्त होती हैं । २. देवजी - देवनारायण, राजस्थान के एक लोक देवता जिनकी उपासना मुख्यतः राजस्थान, मध्यभारत और गुजरातके गुजर जातिके स्त्री-पुरुष करते हैं । देवजी, बगडावतों में प्रमुख भोजाकी गूजर स्त्री सेढके पुत्र थे । देवजीका विवाह परमार क्षत्रिय कन्यासे हुआ था । ३. बगडावतांरी - बगडावतोंकी, अजमेरके हररांम चौहानका एक पुत्र बाधा हुआ । बाघा २४ पुत्र सं. बाघापुत्र > बाघापुत्त > बाघाउत > बाघावत > बगडावत नामसे प्रसिद्ध हुए । बाघड़ा पुत्रसे प्रथवा 'बाघ रावत' से बगड़ावत कहे गये । बगडावत बन्धुनोंके are afraसे सम्बन्धित एक महाकाव्य राजस्थानमें श्राज भी गाया जाता है । ४. वीसलदे चहवांण – प्रजमेरका प्रसिद्ध चौहान शासक विग्रहराज, जो वीसलदे रासका नायक भी है। ५. वास सं. निवास, यहां संरक्षणमें रहनेसे तात्पर्य है । ६. शब्दवेधी - शब्द ध्वनि सम्बन्धी स्थान पर अचूक निशाना लगाने वाला । ७. बालरंड - बालविधवा । ८. पोहकर पाहड़ा मांहै - पुष्करके पहाड़ों में | 8. इसड़ी - ऐसी । १०. माथै - मस्तक पर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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