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________________ १०८ ] परिशिष्ट मह रामायण सीस लीया म, आप ईस सकत्तिसुं येम । जाय पाणिया स ताहि तुं जाणे, __ कहन आणिया सजाण केम ॥ उतबंग अनंत आणीया आगें, नाथ कह सांम्हळि नीय नारि । दीयणहार न मीळीयो दुजो, सींघ समो भूम[प] तिस्यो सैंसारि ॥ आप तणें त्रिय तणों प्रापरी, भड़ भटनेर पड़त भारि । सीर व्यहुँ वसिये सोनंगर, दीधा मुंड बडै दातारि ।। ५२५ दहा वुतबंग अरघंग ता, बंधे कंठ लड़ीयो बयस । जोय अचिरज जैसा नाडुळा, नर हर नयस ॥ १ रांणंगा रूणझुणतेह, रोय आंगरिग रमियो नही । पाय बेड़ी पहरेह, बाजंती बाणारउत ।। १ [२] तगो न जाणे तोल. मूरष मछरीकां तणो। कारणि हेक कुबोल, मारे काय पापे मरे ॥ २ [३] तगा तगाई झिणि करै, बोले मोह सम्हालि । नाहर पर रजपूतन, रेकार ही गालि ॥ ३ [४] कथ कबियण साची कहै, राणिगहबै सम्हालि । काय कर घाति कटारियां, काय पग प्रांठी बालि ॥ ४ [५] जमडढ काढया जाय, चूवती उभै चौहटै । असर न आडा थाय, राणिगदेरा ताकियां ।। ५ [६] सांकि कहियो सरताण, यो कोलाहळ कास हुवं । सदि रीसांणो रांण, काय मंगल षंभ मरोडियो॥ ६ [७] उक्त दूहों में से २, ३, ४ और ६ संख्यक दूहे मूल वार्ता पा चुके हैं, शेष ३ दूहे नवीन हैं । संग्रहमें ५२४ संख्यक 'गीत राणगदे सोनगरारों" शीर्षकके अंतर्गत दिया गया है किन्तु यह वास्तबमें अमरसिंह राठौड़का है। गीतको प्रथम पंक्ति “सम्हारी जेम राणिग सोनगरे" होनेसे लेखकको भ्रम हो गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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