SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ ] परिशिष्ट पना मारुजी प्राजौ जी प्यारा पावरणा हो राज । पना मारुजी काछी चढज्यों कूदरणे हो राज | पना मारुजी हाथे चावक सावल साज || पना मारू धण थारी प्रोलू करै हो राज | पना मारू किणनै कहा दुख जियको प्राज । पना मारुजी मेह वूझा हरक हातमै हो रोज ।। ६२ मेहली लूंवियो राज जब झड रंगरी मचो । नेह मेहरी भूम भूम मैं मतवालो मौज सचो । इंद्रनीलमणिरै मधि नायक कुंदन रेष षची । धरण दामणरोकियौ घण उपमां लची कची ।। ७१ * हो गोरीजीरा बालम सेझडली लुभाया रंग राता है । लोयण झुक झुक उझक लजाता है । षि छकि छकि हरषां [ता] ₹ । कि देषि उठत छाता धुकै रुकं मदमाता रै | कुंवर पना किण नही भावौ अलसाता मुसकाता रे || ७६ महारा प्रालीजाजी थारी छवि भावै । मदछक राग गवाता महलां वरछा थेगा देता आवै ॥ ८० हरिया वनडा नेहडला लगा । अलभ लाभ धन भाग मांन छकि वनडोकै चाव जगा ॥ ८१ गीत हैं जो उक्त ख्याल गुटकेके पुस्तकाकार ६ पत्रों में लिखित है। इसमें कुल ५१ विभिन्न राग-रागनियों में गेय है । सम्भवतः लेखन में ख्याल अपूर्ण रह गया है। उक्त ख्याल राजस्थानी भाषा में गीतिनाट्यके विकासको सूचित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है, जिस पर उत्तर मुगलकालीन कलाका प्रभाव पूर्णरूपेण प्राप्त होता है । ३ वीरमदे सोनीगरारी वात सोनगरा चौहान कान्हडदे, वीरमदे और रागदे नामक वीरोंके विषयमें अनेक साहित्यिक कृतियाँ राजस्थानी भाषामें उपलब्ध होती हैं, जिनमेंसे महाकवि पद्मनाभ विरचित काव्यग्रंथ, कान्हडदे प्रबन्धका प्रकाशन राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला में प्रतिष्ठान द्वारा पहिले किया जा चुका है और वीरमदे सोनीगरारी वातका प्रकाशन प्रस्तुत पुस्तकमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy