SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरमदे सोनीगरारी वात कह्यौ । बिजडा इण वेला' असतरी ल्याव । ___ माहाराजा नेडौ तो कोइ गांम न्ही। असतरी कठासु ल्याबुं । तरै तामस करनै कयौ । तरै पथररी पूतलीरो' कह्यौ । तरै कान्हडदेजी कह्यौ। उरी ले प्राव । मांहरी छाती उपर मेल दै। मन वैसास' छ । तरै पूतली पथररी आंणे नै कानडदेरै छाती उपरा मला। तिसै छातीसुं भीडतां पथररी पूतली मानव देह हूई। तरै बोली । माहाराजा हुं अपछरा" छु । अकन कुंवारी'" छु । राजनै परणीयां पछै सुष भोगवसुं। कांनडदेजी राजी हवा। प्रभातै घोडै चाढनै14 गांम वडाडा माहै सांषलो सोमसिंघ घररो धणी छै तिणरै घरै ले जाय उतारी १. इण वेला - इस समय, वेला (सं.)। २. "बिजडा'ल्याव" - के स्थान पर ख. प्रतिमें यह पाठ है- "वीजडिया रांणी तो ___ काई हाजर नहीं नैं नीद प्राव नहीं । तुं काईक लुगाई ल्याव ।" ३. नेडौ - निकट। ४. तामस - क्रोध । ५. पूतलीरो- पुतलीको बात । ६. उरी - समीप। ७. वैसास छ - विश्वास है (कि यह पत्थरकी पुतली भी सजीव हो जावेगी)। ८. भीडतां - लगाते हुए। ६. अपछरा - अप्सरा। १०. अकन कुंवारी - अक्षुण्ण कुमारी । ११. परणीया पछै - परिणयके पश्चात्, विवाहके बाद । १२. सुष भोगवसुं- सुख भोग करूंगी। ग. प्रतिमें यह प्रसङ्ग इस प्रकार है-"तारां रावजी ने बीजड़ियो चाल्या जंगलरै विच एक देहरै आया। बासौ लोधौ । देहरे में पाखाणरी पूतळी, सा घणी रूड़ी फूटरी कान्हड़देजी उणरै रूप दिसी घणो गोर करि जोवण लागा। तिण समै कोई देवर जोग उवा पूतली थी तिका अपछरा हुई। तर रावजी कह्यौ, थे कुण छो । तरै उवा बोली, अपछरा छू, मैं थान वरिया छ । पिण म्हारी प्रा बात किणी प्रागै कही तो परी जासू।" १३. प्रभात - प्रातःकालमें। १४. चाढन - चढ़ा कर। १५. ख. और ग. प्रतिमें गांवका नाम "वराड़ो" लिखा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy