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________________ ३६६ सव्वण्णू ?, बाढं, केत्तिया इहं काका ?, 2 - आवश्यक मूलसूत्रम् - १- १/१ 'सट्ठि काकसहस्साई जाई बेनायडे परिवसंति । जह ऊनगा पवसिया अमहिया पाहुणा आया || १॥ खुड्डगस्स उप्पत्तिया बुद्धी || बितिओ-वाणियओ निर्हिमि दिट्ठो महिलं परिक्खइ-रहस्सं धरेइ न वत्ति, सो भणइ-पंडुरओ मम काको अहिट्ठाणं पविट्ठो, ताए सहज्जियाण कहियं, जाव रायाए सुयं, पुच्छिओ, कहियं, रन्ना से मुक्कंमंती य निउत्तो, एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी ।। ततिओ -विनं विक्खर काओ, भागवओ खुड्डगं पुच्छइ-किं कागो विक्खरइ ?, सो भगइ-एस चिंतेतिकिं एत्थ विहू अस्थि स्थित्ति ?, खुड्डगस्स उप्पत्तिया बुद्धी || उच्चारे-धिज्जाइयस्स भज्जा तरुणी गामंतरं निजमाणी धुत्तेण समं संपलग्गा, गामे ववहारो, विभत्ताणि पुछियाणि आहार, विरेयणं दिन्नं, तिलमोयगा, इयरो धाडिओ, कारणियाण उप्पत्तिया बुद्धी ॥ गए- बसंतपुरे रायामंति मग्गइ, पायओ लंबिओ-जो हत्यि महइमहालयं तोलेइ तस्स य सय सहस्सं देमि, सो एगेणं नावाए छोढुं अत्थग्धे जले धरिओ जेण छिद्देण तीसे नावाए पाणियं तत्थ रेहा कड्डिया, उत्तारिओ हत्थी, कट्टपाहाणाइणा भरिया नावा जाव रेखा, उत्तारेउं तोलियाणि, पूजिओ मंती कओ, एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी । अन्ने भणति गाविमग्गो सिलाए नट्टो, पेढे (पोट्ट) पडिएण नीणिओ, एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी ।। घयणो-भंडो सव्वरहस्सिओ, राया देवीए गुणे लएइ निरामयत्ति, सो भणइ न भवइति, किह ?, जया पुष्पाणि केसराणि वा ढोएइ, तं तहत्ति विन्नासियं, नाए हसियं, निब्बंधे कहियं, निव्विसओ आणत्तो, उवाहणाणं भारेणं उवडिओ, उड्डाहभीयाए रुद्धो, घयणस्स उप्पत्तिया बुद्धी । गोलगो नक्कं पविट्ठो, सलागाए तावेत्ता जउमओ कड्डिओ, कहूंतस्स उम्पत्तिया बुद्धी ॥ खंभे -राया मंतिं गवेस, पायओ लंबिओ, खंभो तडागमज्झे, जो तडे संतओ बंधइ तस्स सयसहस्सं दिजइ, तडे खीलगं बंधिऊण परिवढेण बद्धो जिओ, मंती कओ, एयस्स उप्पत्तिया बुद्धी || खुड्डए -परिव्वाइया भणइ-जो जं करेइ तं मरूकायव्वं कुसलकम्मं, खुड्डगो भिक्खट्टियओ सुणेइ, पडहओ वारिओ, गओ राउलं, दिट्ठो, सा भणइ-कओ गिलामि ?, तेन सागारिय दाइयं, जिया, काइयाए य पउमं लिहियं, सा न तरइ, जिया, खुड्डगस्स उप्पत्तित्या बुद्धी ॥ africa - एगो भगाय पवहणेण गामंतरं वच्चइ, सा सरीरचिंताए उइन्ना, तीसे रूवेण वाणमंतरी विलग्गा, इयरी पच्छा आगया रडइ, ववहारो, हत्थो दूरं पसारिओ, णायं वंतरित्ति, कारणियाणमुप्पत्तियत्ति ॥ मग्गे मूलदेवो कंडरिओ य पंथे वांति, इओ एगो पुरिसो समहिलो दिट्ठो, कंडरिओ तीसे रूवेण मुच्छिओ, मूलदेवेण भणियं अहं ते घडेमि, तओ मूलदेवो तं एगंमि वणनिजे ठविऊण पंथे अच्छइ, जाव सो पुरिसो समहिलो आगओ, मूलदेवेण भणिओएत्थ मम महिला पसवइ, एयं महिलं विसजेहि, तेन विसिज्जया, सा तेन समं अच्छिऊण आगया आगंतूण य तत्तो पडयं घेत्तूण मूलदेवस्स धूत्ती भणइ हसंती-पियं खुणे दारओ जाओ, दोहवि उपत्तिया || इत्ति दोन्हं भाउगाण एगा भज्जा, लोगे कोडुं दोण्हवि समा, रायाए सुयं परं विम्हयं गओ, अमञ्चो भइ-कओ एवं होति ?, अवस्स विसेसो अत्थि, तेन तीसे महिलाए हो दिनो जहा- एएहिं दोहिवि गामं गंतव्वं, एगो पुव्वेण अवरो अवरेण, तद्दिवसं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003377
Book TitleAgam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages808
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 40, & agam_aavashyak
File Size16 MB
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