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________________ २४० महानिशीथ-छेदसूत्रम् -७(9)/-/१३७६ मू. (१३७६) से भयवं कइविहं पायच्छित्तं उवइट्ट गोयमा दसन्विहं पायच्छित्तं उवइलु तं च अनेगहा जाव णं पारंचिए। मू. (१३७७) से भयवं केवइयं कालं जाव इमस्स णं पच्छित्त-सुत्तस्सानुद्वाणं वट्टिही गोयमा जाव णं कक्की नाम रायाणे निहणं गच्छिय एक्क-जियाययण-मंडियं वसुहं सिरिप्पभे अनगारे भयवं उद्धं पुच्छा गोयमा उढे न केइ एरिसे पुन-भागे होही जस्स णं इणमो सुयक्खंधं उवइसेज्जा मू. (१३७८) से भयवं केवइयाई पायच्छित्तस्सणं पयाई गोयमा संखाइयायं पायच्छित्तस्स णं पयाइं से भयवं तेसिंणं संखाइयाणं पायच्छित्तस्स पयाणं कि तं पढणं पायच्छित्तस्स णं पयं गोयमा पइदिन-किरियंसे भयवं किंतंपइदिण-किरियं गोयमाअनुसमयं अहनिसा-पाणोवरमं जावअनुहृयव्वाणिसंखेजाणिआवस्सगाणिसे भयवंकेणंअटेणंएवं वुचइजहाणं-आवास्सागाणि गोयमाअसेस-कसिणट्ठ-कम्मकक्खयकारि-उत्तम-सम्म-दंसण-नाण-चारित्त-अचंत-घोर-वीरुग्ग कट्ठ-सुदुक्कर-तव-साहणट्ठाणएपरुविख्रतिनियमिय विभत्तुद्दिठ्ठ-परिमिएणंकाल-समएणंपयंपएणं अहनिस-अनुसमयं आजम्मंअवस्सं एव तित्थयराइसुकीरंतिअनुट्ठिजंति उवइसिज्जतिपरूविजंति पन्नविजंति सययं एएणं अटेणं एवं बुच्चइ गोयमा जहा णं-आवस्सगाणि तेसिं च णं गोयमा जे भिक्खू कालाइक्कमेणं वेलाइक्कमेणं समयाइक्कमेणं अलसायमाणेअनोवउत्त-पमत्तेअविहीए अन्नेसि च असद्धं उप्पायमाणे अन्नयरमावस्सगं पमाइय-पमाइयं संतेनं बल-वीरिएणं सात-लेहडत्ताए आलंबणं वा किंचि धेत्तूणं चिराइउं पउरिया नो णं जहुत्तयालं समनुढेजा से णं गोयमा महापायच्छित्ती भवेना। मू. (१३७९) से भयवं किंतं बितियं पायच्छित्तस्सणं पयं गोयमा बीयं तइयं चउत्थं पंचमं जावणं संखाइयाइं पच्छित्तस्स णं पयाई तावणं एत्थं च एव पढम-पच्छित्त-परूअंतरोवगायाई समनुविंदा से भयवं केण अडेणं एवं वुच्चइ गोयमा जओणं सव्वावस्सग-कालानुपेही भिक्खू णं रोद्दट्टग्झाण-राग-दोस-कसाय-गारव-ममाकाराइसुंणं अनेग-पमायालंबणेसुसब्ब-भाव-भावतरंतररेहिणं अञ्चत्तं-विष्पमुक्को भवेजा केवलं तु नाण-दसण-चारित्त-तवोकम्म-सज्झायज्झायणसद्धम्मा-वस्सगेसु अभिरमेजा तावणं सुसंवुडासव-दारे हवेजा जावणं सुसंवडासव-दारे हवेज्जा तावणं सजीव-वीरिएणं अनाइ-भव-गहणं संचियाइठ्ठ-दुट्ट-हु-कम्मरासीए रूगंत-निट्ठवणेक्क बद्धलक्खोअनुक्कमेण निरुद्ध-जोगी भवित्ताणं निद्दद्धासेस-कम्मिंधणेविमुक्त जाइ-जरा-मरण-चउगइसंसार-पास-बंधणे यसव्व-दुक्ख-विमोक्ख तेलोक-सिहर-निवासी भवेजा एएणं अटेणं गोयमा एवं वुच्चइ जहाणं-एत्थं चेव पढम-एवं अवसेसाइंपायच्छित्तं-पयाइं अंतरोवगयाइं समनुविंदा। म. (१३८०) से भयवंकयरेतेआवस्सगेगोयमाणं चिइ-वंदनादओसेभयवंकम्ही आवस्सगे असइ पमाय-दोसेणं कालाइक्कमिए वा वेलाइक्कमिए इ वा समयाइक्कमिए इ वा अणनोवउत्तपमत्तेइ वा अविहीएसमनुट्ठिएइ वा नो णंजहुत्तयालं विहीए सम्मं अनुट्ठिए इवा असंपडिए इवा विच्छंपडिए इवा अकए इवापमाइए इवा केवतियं पायच्छित्तं उवइसेज्जा गोयमाजे केई भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपाव-कम्म-दिक्खा-दिया-पभईओ अनुदियह जावज्जीवाभिग्गहेणं सुविसत्थे भत्ति-निब्भरे जहुत्त-विहीए सुत्तत्थं अनुसरमाणेण अनन्न-मानसेगग्ग-चित्ते तग्गय-माणस-सुहझवसाए थय-थइहिं न तेकालियं चेइए वंदेजा तस्स णं एगाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003376
Book TitleAgam Sutra Satik 39 Mahanishith ChhedSutra 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages170
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size4 MB
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